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इंसाफ करो – रिम्पी अंकुर

इस धरती पर पाप अगर ऐसे ही बढ़ता जाएगा ,

कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा !

इंसाफ करो, इंसाफ करो

 

सपने कितने  संजोए थे, रातें कितनी न सोए थे,

खून का कतरा-क़तरा दे माला में फूल पिरोये थे ।

सोचा था होगा जीवन में बेटी के उजियारा,

कैसे किसी ने कर डाला इक पल में ही अंधियारा ।

नई उड़ानों के सपनों को कौन उड़ाना चाहेगा ।

कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा !

इंसाफ करो, इंसाफ करो

 

भूले नहीं निर्भया को अब फिर ये नया संताप हुआ,

जिसका आँगन था खनकना, घोर वहाँ विलाप हुआ ।

चैन से सोये मां बाबा की नींदें पल में उजड़ गईं ,

एक आँख से लहू जो निकला  शर्म से धरती डूब गई ।

अब अपनी बगिया में कोई कलियाँ नहीं खिलाएगा ।

कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा !

इंसाफ करो, इंसाफ करो

 

सोचूँ तो रूह काँप उठे, और दिल दहल ये जाता है ,

कैसे कोई फूलों पर हैवानियत बरपाता है ।

पूछो उस बेटी से कोई जिसने दर्द को झेला है,

कैसे कोई इस पीड़ा को शब्दों में कह पाता है ।

जीवित रहे ये पापी तो फिर सर्वनाश हो जाएगा,

कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा!

इंसाफ करो, इंसाफ करो

 

फूल-परी मत कहो सुता को काली का अवतार कहो,

लड़ सके सारी दुनिया से हाथों में तलवार दो ।

शिक्षा और ताकत से बेटी को बलवान बनाना है,

बेटों को कुछ देना तो पहले अच्छे संस्कार दो ।

इन हालातों में बेटी को फिर दफनाया जाएगा,

कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा!

इंसाफ करो, इंसाफ करो

–  रिम्पी अंकुर लीखा, हांसी, हिसार हरियाणा

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