Neerajtimes.comमुजफ्फरपुर(बिहार) – कविता का जन्म भावना से और भावना का उद्देश्य करुणा से है। इस पुस्तक का जन्म ही करुणा से हुआ है। आज के भौतिक समय में भावना कहीं दूर चली गई है। ये बातें गुरुवार को पूर्व प्राध्यापक डॉ. भगवान लाल सहनी ने कही। वे आरबीबीएम कॉलेज कॉलेज के सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे। इस समारोह में ‘अनसुलझी उलझन की बातें’ नामक कविता संग्रह का लोकार्पण किया गया। डॉ. सहनी ने कहा कि इस कविता संग्रह में सनातन तत्व मौजूद हैं। सनातन संस्कृति का प्रारंभ ही परिवार से होता है। इस किताब की कविताओं में मां की गोद भी है और पिता की चिता भी।
आरबीबीएम कॉलेज की प्राचार्य डॉ. ममता रानी ने कहा कि इस संग्रह की कविताओं में देशज शब्दों का बखूबी इस्तेमाल किया गया है। कविताओं में लेमनचूस, किनने, चाउर, भात, टीशन, कचरी-प्यजुआ, खेलौना-फुलौना, टीसन जैसे देसी शब्द लिखे गए हैं जो पाठक को सीधे अपनी माटी से जोड़ रहे हैं।
पूर्व उपमेयर विवेक कुमार ने कहा कि रचनाकार ने आम इंसान की भावनाओं को इस किताब में बखूबी समेटा है। हृदया प्रियदर्शी ने उपस्थित श्रोताओं को किताब में लिखी कविता ‘कोई ऊंच कहे कोई नीच कहे, कोई रंगभेद का मान करे, बंदे हम सब भगवान के हैं, फिर अंतर क्यों इंसान करे’ सुनाई। वहीं, किताब के लेखक अभिषेक प्रियदर्शी ‘राही’ ने मां व पिता को समर्पित कविताओं का सस्वर पाठ किया। समारोह का संचालन मनोज कुमार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन चित्राचार्य मुकेश सोना ने किया।
समारोह में डॉ. बिनीता रानी, भोला चौधरी, सुमित कुमार ठाकुर, अविनाश तिरंगा, ब्रजेश कुमार, डॉ. नीलू झा, डॉ. रामेश्वर राय, डॉ. चेतना वर्मा, विशाल कुमार, राजीव रंजन, डॉ. सुजाता सिन्हा,अनिल कुमार, शक्ति सौरभ, आदर्श रंजन, महालक्ष्मी आदि शामिल रहे।