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शब्द मेरे अर्थ तेरे – सविता सिंह

मेरे मन के भावों को शब्दों में पिरोती  हूँ,

कुछ-कुछ अपनी कुछ सबकी कहती हूँ।

मेरी कविता  लगे आपको अपनी जैसे,

तो  लेखनी को अपनी धन्य समझती  हूँ।

सरल  लिखती हूँ,  सहज  लिखती  हूँ,

कभी छंद बद्ध कभी, मुक्त  लिखती हूँ।

कोशिश   है   की   मन  को  छू   सकूँ,

इसलिए  सिर्फ  मन  से ही लिखती हूँ।

कुछ  शब्दों  का   ही  किया है संचय,

बस  यही  है  छोटा  अपना  परिचय।

कदम  बढ़ा लिए, तो तय कर लेंगे मील,

मंजिल मिले या ना मिले कुछ तो होगा हासिल।

– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर

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