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ग़ज़ल – रीता गुलाटी

सजाया घर भी बड़ा आज तो करीने से,

नही चमक कही कम यार अब नगीने से।

 

रकीब संग करूं प्यार से भरी बातें,

सुकून  भी बड़ा मिलता है यार जीने से।

 

लिये हुए है वो अब जाम होठ लाने मे‌,

नही मिला है कही अब करार पीने से।

 

ये जिंदगी भी हमे कुछ सिखा रही है अभी,

वो झूठ  बोल  रहा था  बडे सलीके से।

 

मिलेगी मौत पे जाकर ही अब करार मुझे,

हुआ बड़ा है कठिन आज तुमको समझने से।

 

यकीन आ ही जाता यार के गुनाहो का,

तभी तो दूर रहे यार अब जमाने  से।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़

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