neerajtimes.com – भारतीय धर्म, संस्कृति एवं साहित्य के उत्कर्ष में गोस्वामी तुलसीदास का अवदान अनुपम है। जीवन में स्वीकृत मूल्यों और मान्यताओं के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा है। तुलसी लोक संस्कृति के कवि हैं। यही उस सन्त की मानवी संस्कृति है। उनके युगबोधक सन्देश में सम्पूर्ण मानवता की रक्षा का भाव है।
तुलसी वर्तमान संस्कृति के प्रणेता और मानवता के अमर सन्देश प्रदाता हैं। उनकी दृष्टि भक्ति, आचार व्यवहार, सामाजिक मर्यादा, नैतिक मूल्य और लोकहित के लिए उपयोगी तत्वों पर टिकी रही। तुलसी महान लोक नायक और क्रांतिदर्शी कवि थे। सत्य की स्थापना और असत्य का नाश तुलसी के लोकाभिराम की जीवन गाथा है। रामकथा के माध्यम से तुलसी ने हमारे समक्ष मानवता का ऐसा सन्देश प्रस्तुत किया है जिसको अपनाकर हम अपनी संस्कृति की, अपनी वैचारिक विरासत की तथा सम्पूर्ण मानवता की रक्षा कर सकते हैं।
वे महान युगान्तरकारी कवि थे। उन्होंने मानव चेतना का नव परिष्कार करके उसमें अपना स्थायी स्थान बना लिया है। वे जन-जन के कवि बन गये हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तुलसी के अवदान के संबंध में लिखते हैं ”उनकी वाणी के प्रभाव से आज भी जनमानस अवसर के अनुसार सौन्दर्य पर मुग्ध होता है, महत्व पर श्रद्धा करता है, शील की ओर प्रवृत्त होता है, सन्मार्ग पर पैर रखता है, विपत्ति में धैर्य धारण करता है। मानव जीवन के महत्व का अनुभव करता है।”कविता के विषय में तुलसी ने लिखा है कि वही कविता उत्तम है जो लोक मंगलकारिणी हो और जो सुरसरि अर्थात् गंगा के समान सबका समान रूप से हित करने वाली भी हों। तुलसी ने परिवार का जो आदर्श रखा यह विश्व के लिए अनुपम है। लोक नायकत्व की मंगल भावना उनकी रचनाओं में मुखरित हुई है। उन्होंने युगधर्म को पहचाना। परम्परा की सतत प्रवाहित संस्कृति एवं सभ्यता में तुलसी की आस्था है।
तुलसी का काव्य शास्त्रज्ञ से जनसामान्य को अपनी ओर आकर्षित करता है। तुलसी एक सहृदय और समर्थ कवि की प्रबन्ध पटुता एवं सरसता से परिपूर्ण थे। उनके मृदुल संस्पर्श से रामकथा का व्यापक स्वरूप स्थापित हो गया। सरस और सुरूचि पूर्ण भाव प्रवाह उनकी लेखनी में था। गोस्वामी जी सन्त कवि है। उनकी सभी रचनाएं धार्मिक चिन्तन एवं भक्ति भावना से ओत प्रोत हैं। रामचरित मानस में यही भावना कूट कूट कर भरी है। आध्यात्मिक साधना हेतु तुलसी ने भक्ति मार्ग को अपनाया। तुलसी मर्यादा का निर्वाह करते हैं उनका भाव हृदय को छू लेता है। युग चेतना के प्रवर्तक और लोकमत का समन्वय रामचरित मानस में तुलसी ने संदेश के रूप में किया है। भारत की सम्पूर्ण चेतना को मार्मिक काव्य की वाणी में व्यक्त करके तुलसी प्रमुदित हो जाते हैं। राम चरित मानस उनका अलौकिक कोष है। सदा उच्च आदर्शों, नवीन जीवन मूल्यों का स्वर कवि ने मुखरित किया। तुलसी ज्ञान और प्रतिभा के धनी कवि हैं। उन्होंने लोक और शास्त्र, गृहस्थ ज्ञान, पाण्डित्य और अपाण्डित्य का समन्वय प्रस्तुत किया है। युगधर्म को उन्होंने पहचाना।
तुलसी लोकदर्शी कवि थे। उनके द्वारा न केवल भक्तों का अपितु लोक कल्याण का भी ध्यान रखा गया उनका हृदय जन मंगल की भावना से परिपूर्ण था। यही कारण है कि रामचरित मानस जनजन का कण्ठहार बन गया। तुलसी जैसे मनीषी कवि को जन्म स्थान की संकीर्णता में नहीं रखना चाहिए। कवि का रचना संसार ही उसकी महत्ता का ज्योतिपुंज होता है। कवितावली में अपने जीवन की सारी बातें रखने का उनका प्रयास था। उन्होंने सबको सियाराम मय देखा।
जीवन के दुख दर्द की पीड़ा के मर्म से वे परिचित थे। जीवन में स्वीकृत मूल्यों एवं परम्पराओं के प्रति तुलसी में अगाध श्रद्धा है। वे भारतीय मनीषा एवं सार मूल्यों के अद्वितीय प्रस्तोता है। तुलसी समाज का गरल पान करके भी सुधा बांटते रहे। तुलसी के काव्य की सबसे बड़ी विशिष्टता उसकी सहजता है। आज मूल्यों के हृास होने के समय तुलसी का सन्दर्भ उपादेय है। रामत्व की प्रतिष्ठा तुलसी के साहित्य को विराट एवं उदात्त बनाती है। शील, भक्ति और सौन्दर्य से मण्डित राम अलौकिक और अनन्त शक्ति के प्रतिमान बनकर जन मानस में स्थापित हैं। मूल्यों की जिजीविषा तुलसी के काव्य से फूट पड़ती है। अजस्र ज्ञान स्रोत प्रवाहित कर भक्तकवि ने अभिनव चेतना से दिगदिगन्त को राम के उच्च आदर्श से परिचित कराया। लोक संस्कृति के महान कवि के रूप में गोस्वामी तुलसीदास का सांस्कृतिक पक्ष अनुपम है।
आत्मदृष्टा के रूप में तुलसी संस्कृति निरूपण करते हैं। संस्कृति के मेरूदण्ड के रूप में मर्यादा की स्थापना करते हैं। प्राचीन काव्य परम्पराओं का मात्र अध्ययन और अनुगमन ही वे नहीं करते अपितु मौलिक रूप में बहुत कुछ जोड़ते भी हैं। जीवन की पीड़ा का मर्म उन्हें दंश देता रहा। नहिं दरिद्र सम दुख जग माही। मानवता के लिए उनका साहित्य पथ प्रदर्शक है। तुलसी साहित्य में रामत्व की स्थापना करते हैं। विपुल संदर्भों में जुड़ता रामत्व तुलसी के साहित्य को विराट एवं उदात्त बनाता हैं। तुलसी के कवि मानस के साथ जनमानस अथवा युग मानस सूत्रबद्ध हैं। तुलसी की लोकसाधना का अप्रतिम सौन्दर्य और जीवन का मेरूदण्ड है- समन्वय की दृष्टि। आध्यात्मिक तथा धार्मिक आत्मानुभूति को तुलसी ने संत साधना और काव्य साधना को एक धरातल पर लाकर अद्वितीय कार्य किया है। लोक परम्परा में तुलसी की अगाध आस्था है। भारतीय धर्म संस्कृति और साहित्य संरक्षण, पोषण उन्नयन में तुलसी का अवदान विस्मृत करने योग्य नहीं है। उनकी सरस रामकथा इतनी लोकप्रिय हो गयी कि घर-घर में रामचरित मानस का गुटका आता चला गया। मानव चेतना का परिष्कार करके उसमें अपना स्थायी स्थान बनाया है तुलसी ने। उनका भावस्पर्शी काव्य जगत सम्मोहित कर लेता है। लोक भाषा में विबद्ध उनकी शैली भारत ही नहीं विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाती है। अमर संदेश और चिरन्तन मूल्यों के प्रणेता तुलसी दास महान कवि हैं। जीवन में शाश्वत शान्ति के लिए सात्विक वाणी मन को शुद्ध बनाती है। सांस्कृतिक समाहार की शक्ति बिना हृदयंगम किये तुलसी को सम्यक समझ पाना कठिन है। सर्वजनहिताय की विराट भावना तुलसी के काव्य का प्राण तत्व है। तुलसी सभी को जीने की कला सिखाते हैं। सन्तों की सामाजिक भूमिका के निरूपण में तुलसी इतने सावधान हैं कि उनके अनुसार सन्त सब के हितकारी दुख-सुख में सत्य निष्ठ और सम कहते हैं। सज्जन पुरुष ही समाज को धारण और मंगल करने में समर्थ होते हैं। यही कारण है कि वे कहते हैं- सन्त मिलन सम सुख नाहीं (मानस 17/131/13) संत समागम को जीवन का बड़ा लाभ बताते हैं-गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन (मानस 7/125/ख) इसी लिए उनकी मान्यता है कि जिन्होंने संत दर्शन नहीं किये उनकी आँखें मोर पंख की आंखों के समान निरर्थक हैं- नयनन्हि संत दरस नहि लेखा। लोचन मोर पंख कर लेखा। भक्ति की प्रथम अभिव्यक्ति सत्संग से ही सम्भव है।
तुलसी दास समग्र समाज में संततत्व की भावना उभारना चाहते थे। उन्होंने रामकथा सन्तों से सुनकर ही सुनायी हैं- संतन्ह सन जस किछु सुनेऊँ तुम्हहि सुनायऊँ सोई (मानस 7/93 (क)। उनका पूरा साहित्य हरि भक्तिमय सन्तत्व के उत्कर्ष के लिए ही लिखा गया है। वे विश्व मानव की महागाथा गाते हैं। आधुनिक संस्कृति के तुलसी प्रणेता हैं। वे मानवता का अमर सन्देश देने हमारे सम्मुख आते हैं तथा जन जन के मन प्राण में घुलकर रोम-रोम में रच बसकर समग्र विश्व के कंठहार बन गये हैं।
कवि की दूरदर्शिता अतीत को अनागत से जोड़ती है। मानस मानव मूल्यों की आचार संहिता ही बन गया है। त्याग का आदर्श वसुधा को प्रेममय बना देता है। कवि कर्म की दृष्टि तो ऊंची ही रही है- सुरसरि सम सब कर हित होई अन्यथा का विरोध, तुलसी का मूल सन्देश हैं अपने युग बोधक संदेश में मानवता की रक्षा का उच्च भाव देते हैं। भारतीय संस्कृति में राम का पावन चरित्र उदात्त और मंगलकारी है। रामकथा को मानवीय मूल्यों से सम्पृक्त करके गोस्वामी तुलसी दास सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना के संवाहक बन गये। तुलसी की समग्र दृष्टि जनमानस के विविध पक्षों को समाहित कर स्पन्दन और चिन्तन के विराट फलक को महनीय गौरव से मण्डित करती है। सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठित इस महाकवि ने क्या नहीं दिया इस विश्व को? अपने दिव्यावदान से सम्पूर्ण मानवता की जितनी सेवा तुलसी ने की उतनी किसी कवि ने नहीं की। राम कथा की उपादेयता में गोस्वामी जी उच्चादर्श, समता, शुचिता और सौहार्द का अवलम्बन लेते हैं। जन-जन को तुलसी धन्य कर देते हैं। युगदृष्टा कवीश्वर की सरस्वती निस्संकोच जीवन के सभी क्षेत्रों में विचरण करती हैं श्रद्धा-विश्वास प्रेम के बिना परिवार समाज तथा राष्ट्र का कोई अस्तित्व नहीं होता। तुलसी द्वारा प्रतिपादित मूल्यों में इन तत्वों का पूर्ण प्रभाव है। मानव का मूल्यांकन मनुजता के मानदण्डों में किया जाता है।
मूल्यों के परिवर्तन में श्रेष्ठ साहित्य का अपना योगदान रहता है। तुलसी का काव्य मानव जीवन के विकास में नूतन अध्याय का श्री गणेश करता है।
लोक मंगल की भावना तुलसी के काव्य में पग-पग पर मिलती है।
कवि और भक्त के लोक जीवन के राग द्वेष, माया मोह से ऊपर उठकर लोक मंगल की भावना तथा धारणा से तुलसी अनुप्राणित हैं।
वे लोक मंगल के अध्येता हैं। तुलसी ने राम चरित मानस में सार्वकालिक, सार्वभौम, धर्म जाति, संप्रदाय निरपेक्ष नर नारी के पावन आदर्श की स्थापना की है। जिस ऊंचाई को वे छूते हैं, उसे स्पर्श करने के लिए विशेष श्रम की आवश्यकता पड़ती है।
मानस मात्र एक साहित्यिक कृति ही नहीं अपितु जीवन को पवित्र बनाने वाली निर्मल, निश्छल और नि:स्वार्थ मन की एक मंजुल, मंगलमय धारा है। तुलसी की गवेषणा जनमानस की गहराई को समन्वय एवं शीलता के आधार पर मापती है। संस्कृत भाषा का ज्ञान रखते हुए भी अपना विचार या सुबोध सन्देश जन-जन तक पहुंचाने के लिए तुलसी मानस की भाषा अत्यन्त सरल और सर्वसुलभ रखते हैं। (विनायक फीचर्स)