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तू मेरे हिय में आकर बस जा — सविता सिंह मीरा

एषणा ये मेरी जरा सुन तो सखे

परिरम्भण में तेरे तू मुझे रखे

प्रेम का मृदु संवाद हो जाएगा

आ न हम तुम जरा प्रेम रस ही चखे ।

प्रेम घुलता रहा मैं मचलती रही,

जैसे मीन नीर में विहँसती रही

जल से हो पृथक वो तड़पनें लगी

विलय तुझ में हुआ तुझको जीती रही।

टूट कर मुझको बस आज जीना तुझे

अमिय क्षण में साथी मुझे कुछ ना सूझे

आज जी लेंगे सारे विरह के वो दिन

इस मधुर यामिनी से सूर्य तनिक न जुझे।

इतनी एषणा जरा पूर्ण कर तू सखे।

छक कर प्रेम रस का पान करना सखे।

– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर

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