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पूर्णिमांजलि काव्य संग्रह खिलती कुमुदिनी का सौंदर्य (पुस्तक समीक्षा) – डा ओमप्रकाश मिश्र मधुब्रत

neerajtimes.com – डॉ० पूर्णिमा पाण्डेय “पूर्णा” कृत “पूर्णिमांजलि” काव्य संग्रह को मैंने पढ़ा और पुस्तक मुझे बहुत ही प्रभावित की। इस पुस्तक का आवरण पृष्ठ इतना सलोना है कि बिम्बात्मकता के साथ अपने नाम की सार्थकता व्यक्त करने में सक्षम है। पूर्णिमा का चाँद और अंजलि से झरती किरणों के प्रकाश पुंज की आभा में नीचे सरोवर में खिलती कुमुदिनी का सौंदर्य देखते ही बनता है। वहीं पुस्तक के नामकरण की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति सार्थकता प्राप्त कर लेती है।

पुस्तक के अंतिम कवर पृष्ठ पर कवयित्री का संक्षिप्त परिचय और पुस्तक के प्रकाशन का नाम लोक रंजन प्रकाशन भी दिखाई पड़ जाता है और साथ ही एक कोने में

आईएसबीएन नंबर है–978-81-960674-4-1 और उसी के ठीक नीचे पुस्तक का मूल्य लिखा मिलता है ,रुपये 125/- जो एक झलक में ही पुस्तक की झलक प्रस्तुत कर देता है।

पुस्तक के अंदर प्रविष्ट होते ही

पुस्तक का नाम “पूर्णिमांजलि” और © डॉ पूर्णिमा पाण्डेय लिखा है। यहीं ISBN NO- 978- 81-960674- 4- 1 लिखा है।

मुद्रक- प्रिंट स्टॉप इण्डिया प्रा.लि. मुम्बई। कम्पोजिंग एवं आवरण पृष्ठ – शिजा कम्प्यूटर, अतरसुइया, प्रयागराज।

प्रकाशक- लोक रंजन प्रकाशन ३/२ प्रयाग स्टेशन रोड, प्रयागराज २११००२

ईमेल lokaranjanprakashan@gmail.com

पुस्तक समर्पण कवयित्री ने अपने पिताजी (ससुर) पं० अमर नाथ पाण्डेय को किया है।

पुस्तक की भूमिका में कवयित्री ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि बचपन से ही पारिवारिक परिवेश की संवेदनाओं और पृष्ठभूमि ही ऐसी रही कि बचपन से कवयित्री की सृजनात्मकता को आयाम मिला और सृजनशील होकर अपने मनोभावों को कविता में आबद्ध करती रही हैं। काव्यपाठ और कविता प्रस्तुति पर मिले पुरस्कारों से कवयित्री का मनोबल बढ़ता गया और विशेषकर देवर  श्री रंजन पाण्डेय के आग्रह पर कविताओं को प्रकाशित करने के लिए उन्हें दिया।

अंततः भूमिका में कवयित्री स्वयं कहती हैं, “इस संग्रह में मेरे अलग-अलग भावों की कविताएं हैं। आशा है आपको पसंद आएंगी।”

इसके बाद अनुक्रमणिका में देखने से पता चलता है कि विविध विषयों और शीर्षकों में कविताएं हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं – सत्य, समय, राधाकृष्ण खेलें होली, सजना है मुझे सजना के लिए, भैया दूज (छंद), होली गीत, नारी, दिल, निगाहों में अजब सी दास्तानें हैं, आँख का तारा, पिता, कर्तव्यबोध, जम्मू-कश्मीर, तम्बाकू छोड़ो , दीप, विजयोत्सव, दान करना, मधुमक्खियां, अनुभव, आकर्षण, अभिभावक, आजादी, ख्वाहिश, डूबता सूर्य, ऐसी लगभग 80 से ऊपर कविताएं हैं।

पुस्तक की शुरुआत गणेश वंदना से करके कवयित्री ने लोकप्रथा का सम्यक निर्वहन किया है। और इसी क्रम में शारदे की वंदना भी प्रारंभ में माँ सरस्वती की आराधना का लोक प्रचलित निर्वहन कवयित्री ने किया है। इसी के उपरांत तुरंत अगली कविता माँ तुम आ जाओ एक बार यह एहसास दिलाती है कि कवयित्री का माँ के प्रति सहज अनुराग एवं श्रद्धा भाव रहा है। फिर एक एक करके नौ देवियों की आराधना के स्वर स्पंदित हुए हैं।

इस प्रकार यदि समग्रता से विषय की भाव भूमि देखी जाय तो कवयित्री ने जीवन के हर महत्वपूर्ण पहलुओं पर लेखनी चलाई है। जाने अनजाने परिवार समाज नाते रिश्ते, प्रकृति के उपादान, सांस्कृतिक सामाजिक मूल्यों और नशामुक्ति जैसी ज्वलंत सामाजिक समस्या पर लेखनी चलाई है।

कवयित्री की भाषा सरल मधुर एवं बोधगम्य है । भाव सौंदर्य और कलात्मक सौंदर्य की दृष्टि से यह एक अनुपम साहित्यिक धरोहर के रूप में साहित्येतिहास का एक सोपान बन सकेगी। भावी पीढ़ियां इससे प्रेरणा ले सकेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

अशेष शुभकामनाओं सहित।

पुस्तक का नाम –  “पूर्णिमांजलि”

लेखिका – डा० पूर्णिमा पाण्डेय

समीक्षक – डा ओमप्रकाश मिश्र मधुब्रत

कम्पोजिंग एवं आवरण पृष्ठ – शिजा कम्प्यूटर, अतरसुइया, प्रयागराज

प्रकाशन  – लोक रंजन प्रकाशन

मुद्रक- प्रिंट स्टॉप इण्डिया प्रा.लि. मुम्बई

मूल्य – 125

आईएसबीएन नंबर है–978-81-960674-4-1

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