ऐसे जुमले ज़बान से निकले,
तीर जैसे कमान से निकले।
ज़िक्र जिसका हो धड़कनों में मिरी,
वो भला कैसे जान से निकले।
दम नहीं है तुम्हारी बातों में,
तुम भी अपने बयान से निकले।
तेरे कूचे में रूह भटकेगी
*मीरा* जब भी जहान से निकले।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर