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प्रतिभा एवं संकल्प शक्ति का उभार – पं. लीलापत शर्मा

neerajtimes.com – प्रतिभावान होने का अर्थ है – विनम्र, साहसी एवं संकल्पवान बनना। इसके अभाव में मनुष्य महानता के उच्च सोपनों को प्राप्त नहीं कर सकता। सेंट आगस्टाइन का कहना है कि यदि आप प्रगति करना चाहते हैं, प्रतिभाशालियों की श्रेणी में अपने को खड़ा देखना चाहते हैं तो सर्वप्रथम जीवन व्यवहार में नम्रता को प्रमुखता देनी होगी। भव्य भवन को खड़ा करने के लिए पहले उसकी नींव को सुदृढ़ किया जाता है। भवन जितना ऊंचा बनाना है, उसकी नींव उतनी ही गहरी खोदनी होगी। यही बात जीवन के अन्यान्य सद्गुणों के विकास के संबंध में भी लागू होती है। जीवन का सौंदर्य तभी निखरता है, जब साहस और संकल्पबल के आधार पर विकास के मार्ग पर आने वाले अवरोधों से जूझते हुए चला जाए। ऐसे व्यक्तित्ववान, दृढ़संकल्पी ही समाज का कुछ हित साधन कर पाए हैं।

संसार में जितने भी प्रतिभाशाली महापुरुष हुए हैं, अत्यंत निर्धनता की स्थिति में भी वे पीड़ा और पतन निवारण के अपने कार्य से च्युत नहीं हुए। यद्यपि धन का लालच, पद का प्रलोभन एवं उच्चवर्ग के दबाव उन पर कम नहीं थे। फिर भी वे जीवन भर उसका साहसपूर्वक सामना करते रहे और प्रेम, सम्मान तथा चरित्र से प्रेरित होकर कार्य करते रहे। सुकरात ने अपने विचार छोड़ देने की अपेक्षा विषपान करना अधिक अच्छा समझा।

लन्दन के प्रख्यात विद्वान सैमुएल स्माइल ने अपनी प्रतिद्ध पुस्तक ‘ड्यूटी’ में लिखा है कि प्रतिभा-परिवर्धन में संकल्प शक्ति की प्रखरता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संकल्प बल का धनी व्यक्तित्व अपने सद्विचारों की छाप दूसरों पर छोड़ता है और उनको अपने मार्ग पर घसीट ले जाता है। ऐसे दृढ़ संकल्प-शक्ति वाले मनुष्य जिस भी समाज या राष्ट्र में होते हैं, उसे अभिनव शक्ति प्रदान करते और उनमें नव जीवन का प्राण फूंकते हैं।

उन लोगों की संख्या इस संसार में सर्वाधिक है, जिनकी संकल्प शक्ति या तो कमजोर होती है अथवा होती ही नहीं। ऐसे लोगों में भले या बुरे कामों के प्रति दृढ़ता का पूर्णतया अभाव होता है। वे प्राय. दब्बू किस्म के होते हैं और जिस-तिस के हाथों बिकते और कठपुतली की तरह नाचते दिन काटते रहते हैं। हवा के प्रवाह के अनुरूप तिनके-पत्तों की तरह उड़ कर कहीं से कहीं जा गिरते हैं। उन पर कोई भी अपना प्रभाव जमा सकता है और उनकी इच्छा शक्ति को मोड़ सकता है। नदी के प्रबल प्रवाह को उलटी दिशा में चीर कर मछली की तरह एकाकी आगे बढ़ सकना मात्र संकल्पबल के धनी प्रतिभावानों से ही बन पड़ता है।

सैमुएल स्माइल का कहना है यदि मनुष्य को प्रतिभावान बनना है तो उसे संकल्पबल एवं चरित्रनिष्ठा दोनों को ही सुदृढ़ बनाना होगा, अन्यथा इसके बिना सच्चाई निर्बल रहेगी, नैतिकता भटक जाएगी और हम किन्हीं अयोग्य एवं धूर्त व्यक्तियों के हाथों की कठपुतली बन जाएंगे। ऐसी स्थिति में समाज का, राष्ट्र का निर्माण तो दूर रहा, अपने व्यक्तित्व का विकास भी हम नहीं कर सकते। उनके अनुसार मात्र बौद्धिक विकास द्वारा चरित्र की दृढ़ता नहीं आती। ऐसे लेाग केवल बहस कर सकते हैं, जबकि दृढ़ संकल्प वाले ठोस कार्य कर दिखाते हैं।

इस संबंध में मूर्धन्य मानस् विज्ञानी श्री लॉक का कहना है कि युवावस्था ही वह उपयुक्त अवसर है, जिसमें व्यक्ति अपने संकल्प बल को प्रखर बना सकता है। चरित्र को गढ़ सकता है। यही वह आयु है, जब मस्तिष्क में नए विचार और अच्छे संस्कार जड़ जमा सकते हैं। इस वय में लापरवाही बरतने वालों को आजीवन पछताना पड़ेगा।

लार्ड शाफ्टबरी का कहना है कि अस्तव्यस्त एवं मूर्खतापूर्ण कार्य बुद्धि की -कमी के कारण नहीं वरन् संकल्प शक्ति की कमी से होते हैं। चरित्र का गठन एवं परोपकार पूर्ण कार्य मस्तिष्कीय बौद्धिकता से नहीं, हृदय की विशालता से संबंध रखते हैं। विद्वानों ने, वैज्ञानिकों ने भले ही महान सिद्धांत खोजे या अविष्कार किए होंगे पर महान कार्यों की प्रेरणा दे पाने में वे कम ही समर्थ हुए। मानवता का उद्धार कम-पढ़े लिखे महामानवों द्वारा ही संपन्न हुआ है। प्रतिभा का वास्तविक उन्नयन बौद्धि क विकास से न होकर आंतरिक विकास से संबंधित है। अंत:प्रेरणा इसका प्रमुख स्रोत है। सेंट एनसेल्म के अनुसार ‘अपनी बौद्धिक प्रतिभा पर अधिक विश्वास करने वालों की अपेक्षा ईश्वर उन लोगों के अधिक निकट है जो उस पर विश्वास करते और उसके विश्व उद्यान को समुन्नत बनाने में निरत रहते हैं। (विनायक फीचर्स)

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