(1) ” मैं “, मैं
भारतीय रिज़र्व बैंक
देता हूँ वचन
प्रत्येक नोट धारक को !
कि, वह जब जहाँ चाहेगा…,
मिलेगा मूल्य नोट का उसको !!
(2) ” धारक “, धारक
सदैव करके विश्वास
बैंक की सदाशयता पर
करता है लेनदेन !
बना रहता आत्मसंतुष्ट…….,
और पाता दिन भर सुख-चैन !!
(3) ” को “, कोई
तो बात है
ख़ास नोट की
विश्वास के धरातल पर !
तभी कागजी मुद्रा ने……,
छुए पसंद के सभी शिखर !!
(4) “मैं धारक को..”
इसी एक वाक्य ने
सबकी जेब तक पहुँचायी करेंसी
और फिर बढ़ा देश का व्यापार !
विकास ने तेज गति से रफ़्तार पकड़ी……,
हुआ जन मन गण में खुशियों का संचार !!
(5) “मैं धारक को..”
इस ध्येय वाक्य संग लिखी पुस्तक
है “नवीन”, जानकारियों से समृद्ध
इतिहास को अपने अंदर किए समावेश !
धन्य हैं हमारे प्रिय लेखक “श्रीनवीनजी”,
जिनके सदप्रयासों को सराहता है ये देश !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान