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गीत (नया युग) – जसवीर सिंह हलधर

नए युग के चलन की बात अब किसको बताएं ।

यहां पर खो चुका है आदमी संवेदनाएं ।।

 

धरा को रौंद कर हमने गगन परवाज़ भर लीं ।

नए युग की नई अनुभूतियां अंदाज कर लीं ।

मगर बारूद की दहसत सताती है सभी को ,

बनाओ और मत ये आणविक परियोजनाएं ।।

नए युग के चलन की बात अब किसको बताएं ।।1

 

सनातन सत्य है जीवन कहीं पर स्वर्ग है क्या ।

मनुजता से बड़ा कोई कहीं संवर्ग है क्या ।

हमारे वास्ते सूरज युगों से जल रहा है ,

कभी क्या चांद ने हमसे छुपाई हैं कलाएं ।।

नए युग के चलन की बात अब किसको बताएं ।।2

 

जमीं ने क्या कभी अपने खनिज हमसे छुपाए।

समंदर ने कभी क्या कांख में मोती दबाए ।

हिमालय रोकता क्यों सिंधु से आती हवा को ,

समंदर से उड़ें जलयान बनकर क्यों घटाएं ।।

नए युग के चलन की बात अब किसको बताएं ।।3

 

हमारी खामियों से यह जगत बर्बाद होगा ।

हमारे नाश का कारण धर्म उन्माद होगा ।

अगर जागे नहीं तो लोक का अंतिम चरण है ,

समूचे विश्व को खा जाएंगी मज़हब बलाएं।।

नए युग के चलन की बात अब किसको बताएं ।।4

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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