मनोरंजन

अविष्कारों की मजेदार कहानियां – बृजमोहन गुप्त

neerajtimes.com – विज्ञान के क्षेत्र में नए आविष्कार करने के लिए क्या-क्या तामझाम चाहिए? बड़ी-बड़ी इमारतें, ऊंची डिग्रियां और बेशुमार दौलत? विज्ञान में खोज के लिए ये सब उतना जरूरी नहीं है। जरूरी है वैज्ञानिक मानसिकता या प्रवृत्ति। जिनमें भी यह प्रवृत्ति पाई गई, वे कुछ न कुछ कर गुजरे हैं। यह बात और है कि शोध पत्रिकाओं में उनका नाम नहीं है, लेकिन आम आदमी की जिंदगी को सुखद बनाने में उनका खासा योगदान है। और हां, उनसे उन्होंने कमाई भी की है।

जरा सोचिए, बालों में लगने वाली हेयर पिन में बल किसने खिलाए होंगे? कागजों में फंसाने वाले क्लिप की खोज किसने की? आपकी पैंट में लगी चैन या जिप का निर्माता कौन है? बाड़ों में लगने वाले कांटेदार तारों की खोज किसने की? फाउंटेन पेन और बाल पेन के खोजकर्ता कौन सी प्रयोगशालाओं में काम करते थे? ऐसी ही न जाने कितनी खोजें हैं जो हम और आप जैसे दिमाग वाले लोगों की खोजें हैं।

फिलेडेल्फिया के हाइमन लिपमेन को ही लीजिए। पेंसिल से काम करते-करते अचानक उन्हें रबर की जरूरत पड़ गई। रबर नदारद था। तब लिपमेन को लगा अगर रबर पेंसिल के ही सिरे पर होती तो यह स्थिति न आती। बस पेंसिल के दूसरे सिरे पर रबर जड़ दी। उनके इस आविष्कार का पेटेंट बिका एक लाख डालर में।

खुद पेंसिल की खोज भी कम दिलचस्प नहीं। सोलहवीं सदी में कंबरलैंड (इंग्लैण्ड) में बेरोडेल के पास तूफान में एक बड़ा पेड़ जड़ से उखड़ गया। गड्ढे में काला-काला खनिज दिखाई दिया। यह ग्रेफाइट था। शुरू में चरवाहों ने इसका इस्तेमाल भेड़ों पर निशान लगाने में किया। बाद में उससे मार्किग स्टिक्स बनीं। हाथ गंदे न हों इसलिए लोग उन पर धागे लपेटते थे। ज्यों-ज्यों पेंसिल घिसती जाती, लिपटा हुआ धागा लोग खोलते जाते।

पेंसिल के ऊपर का खोल किसी वैज्ञानिक ने नहीं, एक बढ़ई ने बनाया। अमेरिका का विलियन मनरो लकड़ी की अलमारियां बनाता था। उसने अपने कारखाने में उपलब्ध एक मशीन से लड़की की 15 से 18 सेन्टीमीटर लंबी और संकरी फट्टियां काटीं। हर पट्टी में ग्रेफाइट की छड़ की आधी मोटाई का खांचा बनाया। फिर उसमें ग्रेफाइट की छड़ रखकर ऊपर से एक और पट्टी रखकर उसे गोंद से जोड़ दिया। इस तरह पेंसिल बनाकर उसने लाखों डॉलर कमाए।

होल्डर की निब को स्याही में डुबो-डुबो कर लिखने से जब वाटरमैन तंग आ गए तो उन्होंने सोचा क्यों न एक नली में स्याही भरकर उसमें निब लगाकर लिखा जाए। आइडिया कारगर रहा और फाउंटेनपेन हमारे हाथों में है।

पेपर क्लिप की कहानी और भी मजेदार है। वाशिंगटन डी.सी. में एक बाबू बस स्टैण्ड पर खड़ा बस का इंतजार कर रहा था। उसे एक हेयर पिन मिल गई। वह समय काटने के लिए उसे यों ही मोडऩे लगा। थोड़ी देर में उसे लगा कि उसने हेयर पिन को एक विशेष आकार में मोड़ दिया है। उसे लगा कागजों में फंसाने के लिए यह उपयुक्त रहेगा। बस वह सीधे पेंटेट ऑफिस गया और उसे पेटेंट करा आया। आज पेपर क्लिप हमारे लिए जरूरी चीज बन गई है।

सेफ्टीपिन की खोज भी कहते हैं ऐसे ही हुई। एक आलसी आदमी की बीवी के ब्लाउज का बटन टूट गया। बीवी ने उसे बटन खरीद कर लाने का हुक्म दिया। आलसी आदमी भला क्यों उठता। उसने इधर-उधर देखा और एक पिन को मोड़कर कहा- फिलहाल इसे फंसा लो। तरीका काम कर गया। थोड़े से सुधार से सेफ्टीपिन बनने लगी। 1849 में वाल्टर हंट ने उसका पेटेंट ले लिया।

विलियम पेंटर ने भी एक छोटे से आविष्कार से अरबों रुपए कमाए। उसने सोडा वाटर और बियर की बोतलों पर लगने वाले एयर टाइट ढक्कन बनाकर यह पैसा कमाया।

बिजली कर्मचारी डेनियल ओ सुलीवान का आविष्कार तो मजबूरी में  हो गया। उसकी कंपनी ने उसे रबर का एक पैड दिया और कहा कि वह बिजली की जांच करते समय उस पर खड़ा रहे। इससे बिजली का झटका नहीं लगेगा। भुलक्कड़ सुलीवान वह पैड ले जाना ही भूल जाते और बिजली का झटका खाते। एक दिन उसने रबर के कई टुकड़े किए और उन्हें अपने जूतों की एड़ी और सोल में ठोक लिया। उसे आराम हो गया। फिर उसने इस युक्ति को पेटेंट करा लिया।

कांटेदार तार आज बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। सौ साल पहले तक किसानों ने बहुत परेशानियां उठाईं। बांस और तारों की बाड़ों का असर ही नहीं होता था। पशु उन्हें तोड़ डालते। फिर बबूल और अन्य कांटेदार पेड़ों की शाखाओं से बाड़ बनने लगीं। इनलॉय का जोजफ ग्लिडन तेज निकला। उसने दो तारों के बीच तार के छोटे-छोटे टुकड़े फंसाकर कांटेदार तारों की रस्सी बना डाली। एक निर्माता ने उसका यह आविष्कार 1873 में 60 हजार डालर में खरीद लिया। इसके अलावा उसे 25 सेंट की रायल्टी हर सौ पौंड तैयार तार पर मिलने लगी।

जिप की कहानी भी दिलचस्प है। व्हिटकोंब एल. जडसन ने एक ऐसी चैन बनाने में सफलता पाई जिसे आसानी से खोला और बंद किया जा सकता था। 1893 में शिकागो के विश्व व्यापार मेले में उसने इसका प्रदर्शन किया। मीडविले के एक युवा वकील लेविस वाकर को उसके व्यापारिक इस्तेमाल की काफी संभावनाएं दिखीं। दोनों ने भागीदारी में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार किया।

15 साल तक जडसन खिसकने वाली चेन बनाने की मशीन बनाने में लगे रहे, पर असफल रहे। हार कर वे फर्म से अलग हो गए। पर वकील वाकर ने हिम्मत नहीं हारी।

एक दिन वाकर की मुलाकात स्वीडन के एक इंजीनियर गिडियन संडबैक से हुई। वाकर ने उनसे सहायता का अनुरोध किया। पहले तो संडवैक को लगा कि उसके साथ मजाक किया जा रहा है, पर चैन निर्माण की प्रगति देखकर उसने सहायता का निश्चय किया। 1905 में उसका पेटेंट ले लिया गया। पर चैन नहीं बिकी। हार कर वाकर वकालत के पेशे में लौट गए। इसी बीच उनके दो बेटों ने चैन की बिक्री के लिए सेल्समैन का काम शुरू किया। उन्होंने एक टेलर को अपने साथ मिलाया। चैनें चल निकलीं। 1920 तक हुकलेस फासनर कंपनी, मीडिविले में 30 कर्मचारी काम करने लगे। 1920 में ही गुडरिच कंपनी के एक अधिकारी एफ.एच. मार्टिन की नजर  तंबाकू के एक बटुए पर पड़ी। उसमें ऐसी ही चैनें लगीं थीं। उसे लगा कि उसकी कंपनी के जूतों के लिए तो ऐसी ही चैन की जरूरत है। मार्टिन ने वैसी ही चैन लगाकर जूतों का एक जोड़ा तैयार कराया और कंपनी के अध्यक्ष बरट्राम जी वर्क को दिखाया। वर्क खुशी से चिल्ला पड़े। इस तरह चैन जिपर बन गई। जूतों, बटुओं, पेंटों और जैकिटो से लेकर न जाने कहां-कहां उसका उपयोग हो रहा है। कई कंपनियां हर दिन लाखों की संख्या में उन्हें बना रही हैं।

पावडर के डिब्बे पर लगे ढक्कन को कभी आपने गौर से देखा है। उसे थोड़ा सा घुमाते ही डिब्बे के छेद दिखने लगते हैं। उनसे पावडर छिड़का जा सकता है। उल्टी दिशा में घुमाते ही छेद बंद। यह छोटा सा आविष्कार विलियम केंडल का है। इसका पेटेंट उन्होंने 25 हजार डालर में बेचा।

सड़कों पर सफेद पट्टियां न बनी हों तो न जाने कितनी दुर्घटनों रोज हों। फ्रेस्त्रों, केलिफोर्निया के हेवर्ड आर. ला को इन्हें सुझाने का श्रेय जाता है। इसी तरह एक दुकानदार ने कागज की थैलियों में दो मजबूत धागे चिपकाकर कागज के मजबूत थैलों का चलन चला दिया। जे.ई. ब्रेंडन बर्गर नामक एक स्विस ने जिलेटिन पेपर बना डाला। पेपरकप, आइसक्रीम की लकड़ी की चम्मच, बोतलों के ढक्कन खोलने और साइकिल के पाने और न जाने कितनी रोजमर्रा की चीजें इसी तरह खोजी गईं। ऐसी खोजें हम आज भी कर सकते हैं। (विनायक फीचर्स)

Related posts

फेक न्यूज उस विश्वास को मिटा सकती है जिस पर हमारी सभ्यता आधारित है – सत्यवान ‘सौरभ’

newsadmin

वर्तमान ही नहीं भविष्य भी सुधारने का जतन है “मां के नाम एक पेड़” – डा.राघवेन्द्र शर्मा

newsadmin

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु अभियान जारी

newsadmin

Leave a Comment