( 1 )” भ “, भरोसा
हो यदि स्वयं पे,
तो, चलें पाएं दर्शन हम भगवान के !
वह कहाँ नहीं रहता, है कण-कण में बसा..,
आओ, देखें उसे बन, प्रकृतिस्थ यहाँ पे !!
( 2 )” ग “, गर्वित
हूँ और हूँ परम सौभाग्यशाली,
कि, हुए प्रभु के साक्षात् श्रीदर्शन मुझे !
जब-जब हुआ श्रीहरि भक्ति में लीन यहाँ पे…,
तभी दौड़े चले आए, मनअंतस द्वारे प्रभु दर्शन देने l!!
( 3 )” वा “, वातायन
रखें मन का खोलकर ,
और देखें भगवान को सदा साक्षीभाव से !
सर्वदा रहें यहाँ डूबे अपने अंतःकरण में….,
तो हो जाएंगे दर्शन बैठे, प्रभु आत्माराम के !!
( 4 )” न “, नमन
प्रणाम करता चलूँ नित वंदन,
और गाऊं भजन प्रातः श्रीहरि के !
और पाऊँ अप्रतिम अनुपम अद्वितीय दर्शन….,
देख सहस्त्र रश्मियों की सवारी करते भगवान को !!
( 5 )” भगवान “, भगवान
बसें जड़ चेतन सभी में,
नहीं उनका कोई रूप और न ही आकार !
चाहते हो ग़र, देखना भगवान को सच में…,
तो प्रकृतिस्थ बन, पंचमहाभूत तत्वों में देखें साकार!!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान