मनोरंजन

भगवान – सुनील गुप्ता

( 1 )” भ “, भरोसा

हो यदि स्वयं पे,

तो, चलें पाएं दर्शन हम भगवान के !

वह कहाँ नहीं रहता, है कण-कण में बसा..,

आओ, देखें उसे बन, प्रकृतिस्थ यहाँ पे  !!

( 2 )” ग “, गर्वित

हूँ और हूँ परम सौभाग्यशाली,

कि, हुए प्रभु के साक्षात् श्रीदर्शन मुझे  !

जब-जब हुआ श्रीहरि भक्ति में लीन यहाँ पे…,

तभी दौड़े चले आए, मनअंतस द्वारे प्रभु दर्शन देने l!!

( 3 )” वा “, वातायन

रखें मन का खोलकर ,

और देखें भगवान को सदा साक्षीभाव से !

सर्वदा रहें यहाँ डूबे अपने अंतःकरण में….,

तो हो जाएंगे दर्शन बैठे, प्रभु आत्माराम के !!

( 4 )” न “, नमन

प्रणाम करता चलूँ नित वंदन,

और गाऊं भजन प्रातः श्रीहरि के  !

और पाऊँ अप्रतिम अनुपम अद्वितीय दर्शन….,

देख सहस्त्र रश्मियों की सवारी करते भगवान को !!

( 5 )” भगवान “, भगवान

बसें जड़ चेतन सभी में,

नहीं उनका कोई रूप और न ही आकार   !

चाहते हो ग़र, देखना भगवान को सच में…,

तो प्रकृतिस्थ बन, पंचमहाभूत तत्वों में देखें साकार!!

– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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