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तुम प्यार न करते – अनुराधा पांडेय

नैनों में देखो औ बोलो ,

धत्त पगले! कितने झूठे हो!

 

मुझसे कट्टी करके क्षण भर,

सच्ची बोलो! रह पाओगे?

एक बूँद भी आँसू मेरे ,

नैनों के क्या सह पाओगे?

ऐसे ही मत बोलो कुछ भी ,

थोड़ा अपना हृदय टटोलो,

धत्त पगले ! कितने झूठे हो ?

नैनों में देखो औ बोलो ,

धत्त पगले ! कितने झूठे हो ?

 

झुकी हुई है पलक तुम्हारी,

किन्तु नैन में प्रीत भरी है।

मुझे ज्ञात है मेरे हित ही ,

अभी तुम्हारी आँख झरी है ।

मैं भी तो देखूँ सच क्या है ,

आओ अपनी आँखें खोलो ,

धत्त पगले!कितने झूठे हो?

नैनों में देखो औ बोलो,

धत्त पगले ! कितने झूठे हो ?

 

चलो-चलो! अब तोड़ो कट्टी ,

फिर से कल परसों कर लेना।

क्रोध क्षणिक ही अच्छा होता ,

करके फिर भुज में भर लेना ।

मैं हूँ अब निज बाँहे खोले ,

तुम भी अपनी बाँहे खोलो ,

धत्त पगले! कितने झूठे हो!

नैनों में देखो औ बोलो,

धत्त पगले!कितने झूठे हो?

–  अनुराधा पांडेय, द्वारिका ,दिल्ली

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