neerajtimes.com – योग हमारे देश की ऋषि मुनि परम्परा की देन तथा एक प्राचीन जीवन-पद्धति है। । योग के माध्यम से हम मन, आत्मा और शरीर को एक साथ जोड़ते हैं। योग के द्वारा मन, मस्तिष्क और शरीर को पूरी तरह से स्वस्थ किया जा सकता है। तीनों के स्वस्थ रहने से मनुष्य स्वयं को स्वस्थ महसूस करता है। योग को अपनाकर कई शारीरिक और मानसिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि जब से मानव सभ्यता शुरू हुई तभी से योग किया जा रहा है। योग विद्या में भगवान शिव को आदि गुरू के रूप में माना जाता है। भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे बढ़ाने में अपना योगदान दिया। इसके पश्चात ऋषि पतञ्जलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक साक्ष्य सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ हैं जिनकी शारीरिक मुद्राएँ और आसन उस काल में योग के अस्तित्व को दर्शाती हैं।
योग शब्द का शाब्दिक अर्थ जुड़ना है। सांख्यिकी दृष्टि से यदि हम देखें तो जब हम दो संख्याओं को एक साथ जोड़ते हैं तो दोनों के मिलने से जो योगफल होता है वह वृद्धि लिए होता है। योग का अर्थ हर क्षेत्र में वृद्धि से होता है। मनुष्य के जीवन में योग का भी वही अर्थ है जो सांख्यिकी दृष्टि से दो संख्याओं को जोड़ने से प्राप्त योगफल से है, अर्थात वृद्धि। योग मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ बनाता है, शरीर को विकारों से रहित करता है तथा दीर्घायु बनाता है। योग एक प्राचीन शारीरिक और मानसिक अभ्यास है जिसकी उत्पत्ति हमारे देश में हुई थी।
आज योग दुनिया भर में विभिन्न रूपों में प्रचलित है और इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। योग का उद्देश्य मन की शांति और आत्म जागरूकता हेतु ध्यान की आदत विकसित करना है, जो तनाव मुक्त वातावरण में जीवित रहने के लिये आवश्यक है। योग कैसे तनाव को दूर करता है और शरीर को कैसे स्वस्थ रखता है , उस महत्व को बताता है। नियमित रूप से योग करने से मोटापा,डायबिटीज, उच्च रक्तचाप जैसी अनेकों बीमारियों पर नियन्त्रण पाया जा सकता है। योग करने से कई बीमारियों को जड़ से दूर किया जा सकता है।
सन् 2015 में 21 जून को योग दिवस मनाने का फैसला लिया गया। हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न आता है कि 21 जून को ही योग दिवस क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे जो कारण है वह है 21 जून को उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे लंबा दिन होना, जिसे लोग ग्रीष्म संक्रांति भी कहते हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार, ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन होता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के दक्षिणायन होने का जो समय होता है वह सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होता है। इसी कारण 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद 21 जून 2015 को पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। इस पहले योग दिवस के दिन लगभग 35 हजार लोगों ने दिल्ली के राजपथ पर योगासन किया था । इस योग दिवस में 84 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे और 21 योगासनों का अभ्यास किया गया था।
यदि हम वर्तमान परिदृश्य में देखें तो योग बहुत ही आवश्यक बन गया है। अब मनुष्य के जीवन से शारीरिक श्रम काफी हद तक निकल चुका है। आज की पीढ़ी सूचना क्रांति और यांत्रिक शक्ति वाली पीढ़ी है। एक जगह एक ही स्थिति में बैठकर दिन रात काम करती है और फास्ट फूड खाती है। वह दाल, चावल और रोटी खाने वाले को पुरातन मानती है। वह यह नहीं जानती है कि भारत के पुरातन व्यवहार और आदतें ही दीर्घायु का रहस्य हैं। एक ही स्थिति में एक जगह बैठकर काम करने से जो शारीरिक और मानसिक तनाव उत्पन्न होता है उससे निजात पाने के लिए कहीं भी एक स्थान पर बैठकर योग किया जा सकता है।
तेजी से बढ़ते जनसंख्या के घनत्व के कारण खुली जमीन सिकुड़ती जा रही है। वाहनों की अधिकता के कारण सड़कें यमराज की संगिनी बन गयी हैं। पगडंडियां विलोपित हो चुकी है, अब कोई चरागाह या नदी के तीर बचे नहीं हैं जहां आप भागदौड़ कर सकते हैं इसलिए अब व्यायाम और दौड़-भाग करके शरीर को स्वस्थ रखना टेढ़ी खीर हो गया है। अब योग ही एकमात्र विकल्प है जिसे आप अपने घर की छत या किसी पेड़ के नीचे बैठकर कर सकते हैं और अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं।
शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। आप प्रगति तभी कर सकते हैं, आप समय के साथ तभी चल सकते हैं जब आप शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ हों। अपने दैनिक जीवन में प्रातः काल ब्रम्हमुहूर्त में उठकर योग को अपनाएं और देखें कि आप का मन मस्तिष्क दिन भर कैसे स्वस्थ और तरोताजा रहता है। योग आपके तन और मन दोनों को स्वस्थ रखेगा।
आज पूरा विश्व हमारी इस प्राचीन पद्धति के आगे शीर्षासन करता हुआ नजर आ रहा है। हमें योग को मात्र दिवस के रुप में मनाकर अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री नहीं मान लेना चाहिए। यह हमारे दैनिक जीवन में प्रातःकाल का एक हिस्सा होना चाहिए। वर्तमान समय में इसके प्रचार प्रसार के लिए हमारे योग गुरुओं ख़ासकर पतंजलि योगपीठ के स्वामी रामदेव जी ने सराहनीय प्रयास किया। जिसके कारण विश्व स्तर पर योग को पहचान मिली। इसके लिए उनके प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए। – हरी राम यादव, बनघुसरा, अयोध्या, उत्तर प्रदेश