जेष्ठ का महीना आया, हर कोई घबराया,
इस जलती धूप में, बाहर न जाइये।
अंग अंग जल उठा, मौसम ये कैसा रूठा,
इंद्रदेव विनती है, मेघ बरसाईये।
ग्रीष्म ऋतु से बेहाल, जल गई मेरी खाल,
सनक्रीम बढ़िया सी, पति से मंगाइए।
चली गई क्यूँ बाज़ार, पड़ गई मैं बीमार,
वैध बोला बहन जी, खिचड़ी ही खाईये।
– कमल धमीजा, फरीदाबाद, हरियाणा