मनोरंजन

मनहरण घनाक्षरी छंद – कमल धमीजा

जेष्ठ का महीना आया, हर कोई घबराया,

इस जलती धूप में, बाहर न जाइये।

अंग अंग जल उठा, मौसम ये कैसा रूठा,

इंद्रदेव विनती है, मेघ बरसाईये।

 

ग्रीष्म ऋतु से बेहाल, जल गई मेरी खाल,

सनक्रीम बढ़िया सी, पति से मंगाइए।

चली गई क्यूँ बाज़ार, पड़ गई मैं बीमार,

वैध बोला बहन जी, खिचड़ी ही खाईये।

– कमल धमीजा, फरीदाबाद, हरियाणा

Related posts

नैन में पुतरी सदृश तुम – अनुराधा पाण्डेय

newsadmin

खुल जाती मधुशाला – प्रीति त्रिपाठी

newsadmin

भारतीय दूरसंचार बिनियामक प्राधिकरण, भारत सरकार (ट्राई) द्वारा उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रम

newsadmin

Leave a Comment