ख़ामोशी भी अंदाज ए बयाँ है जज़्बातों की,
इज़हार ए अफ़साना है, उन अनकही बातों की…
दिल की दिल में रह गईं जो,चुपचाप अश्क़ों मे बह गईं जो।
ख़ामोशी कभी ईकरार तो कभी एतराज़ है,
बिन कुछ कहे, बहुत कुछ कह जाने का अंदाज है…
जुबां ना कभी कह सकीं जो,आखें कह-कह थकीं जो।
ख़ामोशी में समाई कभी जलन कभी नफ़रत,
छुपा ली इसी में, आदमी ने अपनी वो फितरत….
शराफ़त से गई ढ़की जो,कभी दिखाई ना जा सकीं जो।
ख़ामोशी ढंग भी है चाहत छुपा जाने की,
पा लेने की वो बेचैनी मन ही में दबा जाने की…..
ख्वाहिशों में पली-बढ़ी जो,लालच की सीढ़ियाँ चढ़ी जो।
ख़ामोशी वो रंग भी जो हर शख़्स दिखा जाता है,
कितनी खुदगर्ज़ी भरी है उसमें ये भी जता जाता है….
अहं भावों के रंग में रंगी जो, आसमां में टंगी जो ।
ख़ामोशी के हैं ना जाने कितने रूप ,रंग और आकार,
बने कभी दर्द,चुभन,गुस्सा,पछ्तावा तो बने कभी प्यार।
कभी लगे भ्रांति जैसी जो,कभी लगे शान्ति जैसी जो।
– प्रीति यादव, इंदौर , मध्य प्रदेश