( 1 )” न “, नक्षत्र
कृतिका से चलकर सूर्य,
अब नक्षत्र रोहिणी में कर रहा प्रवेश !
और दिनकर चला अब उगलते गर्मी…,
नौतपा में जल तप रहा सारा देश प्रदेश !!
( 2 )” व “, वजूद
खतरे में पड़ा दिखे,
सभी जीव जंतु बेचैन हैं यहाँ पे !
अब जाएं तो जाएं, बचें इससे कहाँ कैसे…,
पड़ रही तेज सूरज की लंबवत सीधी किरणे !!
( 3 ) ” त “, तपन
तीखी चुभने वाली है सीधी
है नौतपा मानो प्रचंड अग्नि का गोला !
लगता है ये मार ही डालेगा सभी जीव-जंतुओं को.,
अब सूझ नहीं रहा कोई यहाँ पे उपाय भला !!
( 4 ) ” पा “, पाबंद
हुआ लगता थम गया हो जैसे शहर ,
और रुक गए कदम सभीके देख सूरज के तेवर !
दूर-सुदूर तक यहाँ आए नहीं कोई भी नज़र…,
लगता सभी छिपे बैठें हैं घर के अंदर !!
( 5 ) ” नवतपा “, नवतपा या नौतपा
कहर है या वरदान ,
ये तो श्रीप्रभु मालिक ही समझें-जानें !
रखें जीव-जंतुओं सभी के लिए दाना-पानी भरके …,
और समझें प्रकृति की चाल, धैर्य बनाए रखें !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान