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नवतपा (नौतपा) – सुनील गुप्ता

( 1 )” न “, नक्षत्र

कृतिका से चलकर सूर्य,

अब नक्षत्र रोहिणी में कर रहा प्रवेश  !

और दिनकर चला अब उगलते गर्मी…,

नौतपा में जल तप रहा सारा देश प्रदेश !!

 

( 2 )” व “, वजूद

खतरे में पड़ा दिखे,

सभी जीव जंतु बेचैन हैं यहाँ पे  !

अब जाएं तो जाएं, बचें इससे कहाँ कैसे…,

पड़ रही तेज सूरज की लंबवत सीधी किरणे !!

 

( 3 ) ” त “, तपन

तीखी चुभने वाली है सीधी

है नौतपा मानो प्रचंड अग्नि का गोला  !

लगता है ये मार ही डालेगा सभी जीव-जंतुओं को.,

अब सूझ नहीं रहा कोई यहाँ पे उपाय भला  !!

 

( 4 ) ” पा “, पाबंद

हुआ लगता थम गया हो जैसे शहर ,

और रुक गए कदम सभीके देख सूरज के तेवर !

दूर-सुदूर तक यहाँ आए नहीं कोई भी नज़र…,

लगता सभी छिपे बैठें हैं घर के अंदर !!

 

( 5 ) ” नवतपा “, नवतपा या नौतपा

कहर है या वरदान ,

ये तो श्रीप्रभु मालिक ही समझें-जानें  !

रखें जीव-जंतुओं सभी के लिए दाना-पानी भरके …,

और समझें प्रकृति की चाल, धैर्य बनाए रखें !!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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