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हीरे मोती – जया भराडे बडोदकर

neerajtimes.com – सोहम और शुभम् बहुत बहुत गहरे दोस्त थे । उपर  सोहम् और नीचे शुभम्  रहता था । दोनों दोस्त साथ साथ स्कूल में जाते और साथ साथ आते। सारे दिन बस खाने के समय और सोने के समय ही अलग होते धे। अब गरमी की छुट्टियां शुरू हो गई और सोहम अपने मामा के गाँव चला गया। थोडे़ दिन में ही शुभम् अकेला बोर होने लगा। फिर उसने अपनी माँ से जिद्द करना चालू कर दिया, कि उसे भी कहीं तो भी घूमने जाना है। माँ ने खूब समझाया कि हम भी जरूर घूमने चलेंगे मगर थोडे़ दिन रुकना पडेगा। अगर थोडे़ दिन के लिए वो शर्मा अंकल के पास गाना सिखने जाएगा तो माँ उसे घूमने लेकर जरूर जाएगी।

शुभम् अंकल के यहाँ गाना सिखने जाने लगा। अंकल भी उसे बहुत प्यार से गाना सिखाते। शुभम् की मेहनत लगन रंग लाई। और उसने अंकल के साथ अपने गाने यू ट्यूब में भेज दिये। और फिर धीरे धीरे उसे कुमार शुभम् के नाम से पहचान ने लगे।

छुट्टी मनाने का खयाल जाने कहाँ खो गया था, उसे गाने का शौक लग चुका था। छुट्टीयां खत्म हो गई और सोहम् भी घर आ गया था। पर संगत का असर बहुत गहरा और आजीवन होता है यह साबित हो चुका था।

सोहम् शुभम् अब दोनों ही अंकल के यहाँ साथ साथ जाने लगे। और बड़े होकर बहुत बडे़ संगीतकार बन गये । और दोनों ने संगीत के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया। इस तरह बचपन की दोस्ती हीरे-मोती मे  बदल चुकी थी।

– जया भराडे बडोदकर,टाटा सेरीन ,ठाने, मुम्बई, महाराष्ट्र

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