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जीवन – जया भराड़े बड़ोदकर

neerajtimes.com – सभी लोग अपने जीवन में बहुत कुछ अच्छा काम कर जाते है। और कुछ लोग नहीं कर पाते।  ये जीवन ईश्वर की दी हुई एक सुंदर रचना एक सुंदर गिफ्ट है।  जो अमुल्य समय बिताने के बाद पताचलता है, या फिर गवाने के बाद।

आज आशा को अफसोस हो रहा है कि उसे जीवन में सभी लोगों का साथ मिला था। मगर,,, वह साथ निभा नहीं पाई।

एक अच्छा पति दो बच्चे पोते पोती क्या नहीं था सभी लोग उसे पूरा प्यार सम्मान और अधिकार देते धै। पर उसकी सास उसे बहुत परेशान करतीं थीं। वह सभी लोगों की कोई न कोई चीज जैसे चाबी, पैसे, चश्मा, छुपा देती। फिर वो लोग आशा को पुकारते रहते और फिर वो चीज़े आशा की अलमारी में मिल जाती। ऐसे आशा कई बार परेशान हो जाती। उसने अपने अलमारी ‌को लॉक लगाना चालू कर दिया। फिर तो और भी मुसीबत में पड़ गई। अब उसकी अपनी चीज़े खोने लगी। एक दिन उसने अपनी सास का पिछा करना चालू कर दिया। तो क्या पता चला की वो सारा दिन चीज़े  खुद लिए घूमती रहतीं और रात को घर के बाहर चक्कर लगाते लगाते दूसरों के कचरे के डिब्बे में डाल दिया करती थी। इस तरह उसने आशा को बहुत सताया। वो अपने पति को कह नही पाती। पति अपने माँ के खिलाफ कोई भी बात सुन नहीं सकता था।

इस तरह कई कई दिन महिने सालों बीत गए। वो सभी लोग उसे ही दोष देते। पर वह चुपचाप सहन करतीं रहती। धीरे-धीरे सास की हिम्मत बढती गई और फिर उसे ही सास ने उसके ही घर से बाहर कर दिया। उसने सब चाले चल कर आशा को, घर से बेघर कर दिया। ईश्वर को कैसे दोष देती उसे खुद समझ नही आया कि उसकी एक गलती जो वह सहन करती रही, अगर वह पहले ही हिम्मत करके टोक देती या किसी को भी बता देती तो उसे आज ये दिन न देखना पड़ता। ऐसी थी आशा जो सब कुछ पाकर भी सब कुछ हार चुकी धी। क्या ईश्वर है तो कहा है। उसने आशा को क्यों नहीं बचाया। आशा घर से निकल कर वृद्धाश्रम में पहुंच चुकी थी। और सब कुछ भूल चुकी थी। सबको मदद करके बहुत खुश रहतीं।

– जया भराडे  बडोदकर, टाटा सैरीन,  ठानै वेस्ट, मुंबई,  महाराष्ट्र

 

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