(1)” अ “, अक़्सर
बैठ अकेले में
करता हूँ जब ‘ॐ’, का उच्चार !
तब जा सीधे प्रभु से जुडूँ ….,
और पाऊँ प्रेम आनंद अपार !!
(2)” के “, केशव
मुरली धुन सुनूँ
चलूँ भजता श्रीहरि का नाम !
अनाहत नाद स्वर से जुड़के…..,
पहुँच जाऊँ सीधे श्रीप्रभु धाम !!
(3)” ला “, लालित्यपूर्ण
भावों से घिरा
चहुँओर पाऊँ सुख चैन सुकून !
स्वयं में इतना गहरा उतर जाऊँ….,
कि, दिखें योगेशं मोहन मधुसूदन !!
(4)” अकेला “, अकेला
निहारते प्रकृति को
पाऊँ अंतस बहता आनंद निर्झर !
और पल-पल जाऊँ उतरे गहरा….,
मिलें श्रीहरि नाम के माणिक्य गौहर !!
(5)” अकेला “, अकेला
बनाए परमसत्ता से तादात्म्य
नित्य जुड़ता जाऊँ परमात्मा संग !
और सद चित्त आनंद भाव में जीते..,
कर पाऊँ श्रीहरिकृष्ण के श्रीदर्शन !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान