मनोरंजन

अकेला – सुनील गुप्ता

(1)” अ “, अक़्सर

बैठ अकेले में

करता हूँ जब ‘ॐ’, का उच्चार !

तब जा सीधे प्रभु से जुडूँ ….,

और पाऊँ प्रेम आनंद अपार  !!

(2)” के “, केशव

मुरली धुन सुनूँ

चलूँ भजता श्रीहरि का नाम  !

अनाहत नाद स्वर से जुड़के…..,

पहुँच जाऊँ सीधे श्रीप्रभु धाम !!

(3)” ला “, लालित्यपूर्ण

भावों से घिरा

चहुँओर पाऊँ सुख चैन सुकून  !

स्वयं में इतना गहरा उतर जाऊँ….,

कि, दिखें योगेशं मोहन मधुसूदन  !!

(4)” अकेला “, अकेला

निहारते प्रकृति को

पाऊँ अंतस बहता आनंद निर्झर  !

और पल-पल जाऊँ उतरे गहरा….,

मिलें श्रीहरि नाम के माणिक्य गौहर !!

(5)” अकेला “, अकेला

बनाए परमसत्ता से तादात्म्य

नित्य जुड़ता जाऊँ परमात्मा संग !

और सद चित्त आनंद भाव में जीते..,

कर पाऊँ श्रीहरिकृष्ण के श्रीदर्शन  !!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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