मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

ख्वाबे-यार में दस्तक देके जगाता रहूँगा,

तू जागे या न जागे तुझे जगाता रहूँगा।

 

बेशक रहा करे ख्याल-ए-गैर में गुमसुम,

ख्वाबो-ख्यालों मे तुझे ही बुलाता रहूँगा।

 

जब भी परवाज़ भरेंगी आवारा ख्वाहिशे,

लम्हा-दर-लम्हा उन्हें मैं सुलाता रहूँगा।

 

बेशक फ़िक्र-ए-इश्क़ में रब को भूल जाऊँ,

मगर तेरी याद में खुद को रुलाता रहूँगा।

 

न सुना कर तू भी रुदादे-दिल-ए-निराश,

पर तस्करा-ए-इश्क़ तुम्हे सुनाता रहूँगा।

– विनोद निराश, देहरादून

ख्वाबे-यार – प्रेयसी के स्वपन्न

दस्तक – खटखटाना / हाथ की ऊँगली का आघात  / दरवाज़ा खटखटाना

ख्याल-ए-गैर – प्रतिद्वंदी (रकीब) के बारे में सोचना

परवाज़ – उड़ान /उड़ने वाला

फ़िक्र-ए-इश्क़ – प्रेम की चिंता / इश्क़ की फिक्र

रुदादे-दिल-ए-निराश – निराश के दिल के रोने की आवाज़ / निराश दिल की व्यग्रता

तस्करा-ए-इश्क़ – प्रेम व्याख्या / प्यार की बातें

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