देवता आहत हुए रोने लगे त्योहार हैं ।
राख ठंडी है मगर भीतर छुपे अंगार हैं ।।
राजनेता ही बढ़ाते दिख रहे अलगाव को ।
फूँकने पर हैं आमादा देश के सदभाव को ।
तीन सौ सत्तर पुनः वो लाएंगे कश्मीर में ,
हर गली हर मोड़ पर बैठे हुए मक्कार हैं ।।
राख ठंडी है मगर भीतर छुपे अंगार हैं ।।1
डोलियों पर पत्थरों से हो रहे हैं आक्रमण ।
धार्मिक उन्माद का दिखने लगा ऐसा चरण ।
पूर्णता की ओर जिनका नाश जाता दिख रहा ,
राजनेता मानसिक रोगी बहुत बीमार हैं ।।
राख ठंडी है मगर भीतर छुपे अंगार हैं ।।2
आमजन भयभीत है आतंक भ्रष्टाचार से ।
आदमीयत दूर होती दिख रही व्यवहार से ।
राजनैतिक सोच में अब गंदगी ही गंदगी ,
हिंदुओं के बीच में भी कौम के गद्दार हैं ।।
राख ठंडी है मगर भीतर छुपे अंगार हैं ।।3
हम नया भारत बनाने के सपन गढ़ते रहे ।
वो हमारे वक्ष पर इस आढ़ में चढ़ते रहे ।
वक्त आता दिख रहा है फैसला कुन जंग का ,
बात यदि आगे बढ़ी हम युद्ध को तैयार हैं ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून