मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

त्याग संस्कृति आप अपनी सुख न पाओगे,

रक्त  के  संबंध  से  मन  हार  जाओगे।

 

धमनियों में जो पवन पानी बसे रज कण,

अंश उनका किस तरह तन से मिटाओगे।

 

छाँव क्या वट वृक्ष की परदेश में होगी,

तमतमाती धूप में जीवन बिताओगे।

 

मित्र, शुभचिंतक, पड़ोसी दोष हरते हैं,

अवगुणों का बोझ नाहक क्यों उठाओगे।

 

प्रेम का अरि धन सहारा वासनाओं का,

मन बिना अपनत्व कैसे मुस्कराओगे।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्य प्रदेश

Related posts

गजल- मधु शुक्ल

newsadmin

गीतिका – मधु शुक्ला

newsadmin

तुम्हें शत् शत् वंदन – कालिका प्रसाद

newsadmin

Leave a Comment