शक्ति स्वरूपा के चरणों में , मन को बिछाया किसलिए,
नहीं दीन से प्रेम किया दुख, अपना सुनाया किसलिए ।
व्यक्ति वही पाता है जो वह, देता है सबको जग में,
सर्व विदित यह बात मनुज मन, जाने भुलाया किसलिए।
ज्ञान वही सार्थक कहलाता, कर्मों में जो लक्षित हो,
जीवन को जो सजा न पाये, धन वह कमाया किसलिए।
मानव जीवन सहज न मिलता, ईश कृपा की छाया है,
तजकर शुभ कर्मों की संगत, छल से निभाया किसलिए।
जब अति पावन, मंगलकारी, है संसार हमारा ,
द्वेष, कपट, द्वारा फिर इसको, हमने सजाया किसलिए।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश