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‘सब तेरे सत्कर्मी फल हैं’ चिंतन का व्यापक दर्प – सुधीर श्रीवास्तव

Neerajtimes.com – पिछले दिनों पितातुल्य अग्रज, वरिष्ठ साहित्यकार आ. संतोष श्रीवास्तव ‘विद्यार्थी’ जी का प्रथम काव्य संग्रह ‘सब तेरे सत्कर्मी फल हैं’ (छोटी बहन के लिए भी एक प्रति सहित) प्राप्त हुआ। आभासी संबंधों की उनकी आत्मीयता का जो प्रत्यक्ष अनुभव २८ मई’ २०२३ को अयोध्या में ‘मतंग के राम’ साहित्यिक आयोजन में हुआ। उसका शाब्दिक वर्णन कर पाना संभव नहीं है। वैसे भी उस तरह का आत्मीय भाव और बड़प्पन मेरे लिए अनमोल पूँजी है, जिसकी चर्चा करना यहाँ मेरे विचार से प्रासंगिक नहीं है।

प्रशासनिक सेवा में रहे संवेदनशील व्यक्ति के रूप आपके चिंतन पर आधारित रचनाओं को विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक काव्य गोष्ठियों में सुनता रहता हूँ। आपके काव्य संग्रह को पढ़कर व्यापक दृष्टिकोण का अनुभव हुआ।

अपने स्व. पिता के सत्कर्मों की छाँव में पूरी तरह अपने जीवन की समस्त उपलब्धियों को विनम्रता से स्वीकारना सभी के लिए एक बड़ा संदेश है। इस दिशा में हर किसी को चिंतन की आवश्यकता है। आज यह इसलिए भी आवश्यक है कि जब माता-पिता की उपेक्षा-अपमान की अनगिनत घटनाएँ देखने-सुनने में आ रही हैं तब इस संग्रह और इसके नाम की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है।

डा. सुरेश आचार्य, गीतऋषि डा. श्याम मनोहर सीरोठिया द्वारा संग्रह का समीक्षात्मक अभिमत, आचार्य पंडित महेश दत्त त्रिपाठी जी की शुभकामना को संग्रह में स्थान मिलना इस बात का प्रमाण है कि आपके निजी व्यक्तित्व के साथ साहित्यिक वटवृक्ष की जड़ें कितनी गहरी हैं।

अपनों से अपनी बात’ में आपने बड़ी सहजता सरलता से अपने साहित्यिक यात्रा का शब्दचित्र खींचते हुए उन सभी को याद रखा जो प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इतने सारे लोगों को एक स्थान पर श्रेय देना विशाल व्यक्तित्व का उदाहरण है। मेरा विचार है कि हमारे अग्रज यदि इस तरह के आत्मीय संबंधों पर पुस्तक लिखना चाहेंगे तो वो बड़ी आसानी से लिख सकेंगे।

सामान्यतया विद्यार्थी जी (दादा) के संग्रह की समीक्षा मुझ जैसे अल्पज्ञ के लिए नामुमकिन- सा है। वर्तमान में यद्यपि मेरा स्वास्थ पहले की अपेक्षा मंदगति से सही, सुधार की दिशा में है, तथापि आगामी दिनों में इस अनमोल पुस्तक की समीक्षा लिखने का दुस्साहस अवश्य करूँगा। पुस्तक को पढ़ते समय बहुत आसानी से यह समझ आया कि आपने काव्य संग्रह को धार्मिक, आध्यात्मिक, पौराणिक, सामाजिक, मानवीय और राष्ट्रीय चिंतन को केंद्र में रखते हुए ऐसे गुलदस्ते के रूप में सजाया है जिसमें अनगिनत रंगों के भावपुष्प स्वत:स्फूर्त हो उठे हैं। संग्रह की अधिकतम रचनाएँ  गेयता से परिपूर्ण होने के साथ विविध छंदों में रचित हैं। मेरा विचार है कि प्रस्तुत संग्रह पाठकों को एकाधिक बार पढ़ने के लिए अवश्य बाध्य करेगा। इस रचनाधर्मिता को रचनाकार और संग्रह की सफलता ही कहा जायेगा।

संग्रह का सबसे सार्थक पक्ष यह है कि इसमें समावेशित रचनाएँ भावना प्रधान हैं और  किसी के भी जीवन में माता- पिता की महत्ता को न केवल रेखांकित करती हैं अपितु समर्पण एवं सेवा भाव के लिए प्रेरित भी करती हैं।

मैं सहजता से महसूस करता हूँ कि प्रस्तुत संग्रह नवोदित रचनाकारों को सीखने- समझने और विभिन्न विषयों पर उनके नव चिंतन को भी नए आयाम देने में समर्थ है, बशर्ते कि वे ‘विद्यार्थी जी’ के इस संग्रह का अवलोकन बतौर विद्यार्थी करें।

स्वयं के लिए सिर्फ़ इतना कि प्रस्तुत संग्रह दादा के आशीर्वाद के रूप में प्रत्यक्ष अनुभूति के साथ मेरे लिए अनमोल उपहार के रूप में सुरक्षित रहेगा। इसे मैं अपनी निजी उपलब्धि मानकर गौरवान्वित हूँ।

– सुधीर श्रीवास्तव, गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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