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श्रेष्ठ मनुज – रश्मि मृदुलिका

भूखे की भूख पर तड़प उठे,

नारी की लाज पर गरज पडे,

श्रेष्ठ मनुज होने के हो अधिकारी,

आँख से एक बूंद जो टपक पडे,

सौंदर्य हर ओर तुम्हें दिखता हो,

सत्य की राह पर जो मिटता हो,

नजरें प्रेम से जब दर्द को चूमती हो,

मनुज है वही जो पर पीड़ सुनता हो,

निज से पहले हम प्रथम भाव हो,

मासूम चहरे पर मन पिघलता हो,

मनुज हो तुम यदि हृदय तुम्हारा,

शिशु सी निश्छल हंसी बिखेरता हो|

जिंदा जमीर धड़कता हो तुझमें,

सवाल सही गलत परखता हो तुझमें,

मनुज श्रेष्ठ हो यदि सच की धारा,

अग्नि बनकर पिघलता हो तुझमें,

– रश्मि मृदुलिका, देहरादून उत्तराखण्ड

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