मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

कामना की डोर जब झूला झुलाती है,

कल्पनाओं की परी सच को सुलाती है।

 

जब जकड़ता मोह, ममता में मनुज का मन,

भोग, संचय का पवन पंखा डुलाती है।

 

क्यों विफलता हाथ लगती सोचते साधक,

दामिनी, मद, मोह की पथ को भुलाती है।

 

भूल कर आराम जब हो साधना मन से,

बाँह फैलाकर तभी मंजिल बुलाती है।

 

कम करे आसक्ति तम को ज्ञान उजियारा,

मैल मन का भक्ति ईश्वर की धुलाती है।

– मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

Related posts

बेटी तो सबको प्यारी है – मणि बेन द्विवेदी

newsadmin

ग़ज़ल – ऋतु गुलाटी

newsadmin

एहसास – ज्योति

newsadmin

Leave a Comment