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एहसास – राजेश कुमार

ये कैसा एहसास है बुझती नही प्यास है,

कुछ बात तो है आपने जो ऐसा अलग आपका अंदाज है।।

शायद तुझे रब ने बनाया बहुत खास बहुत खास है।

ये झील सी गहरी तुम्हारी आंखे कुछ कुछ करती।

आपस में नैनो से बात है हमे बतलाती  जीने का अंदाज है।।

वो सुर्ख चहरे पर लहलहाती चहचलाती सी हसीं।

आपको न देखू तो न चैन न करार है अजीब सा ।।

ये कैसा एहसास है बुझती नही प्यास है।

ये उलझे उलझे नागिन से लहराते बलखाते से कैश।।

ये होंटो लाल गुलाबी सी लाली लगती है मतबाली।

यही तो तेरे ऊपर कुदरत की सौगात है तेरे चेहरे में बो बात है

तेरे माथे की बिंदिया जिसने चीनी मेरी निंदिया।।

यही तो हुस्न वालो को रब की करामात है।

तू उतरी है फलक से जमीन पर तू ही तो आफताब है।।

ये कैसा एहसास है जो बुझती नही है प्यास है

– राजेश कुमार झा, बीना, मध्य प्रदेश

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