मनोरंजन

रिश्ते – सुनीता मिश्रा

जीवन की इस भागमभागी में,

जाने कितने ही रिश्ते रूठ गए,

बहुत संभाला पर बच ना पाए,

मोह के बंधन छूट गए।

 

कांच से निकले लोग यहां,

चटके और फिर टूट गए,

काम ना आया कोई जादू,

जंतर-मंतर सब फूंक गए ।

 

लंबी लिस्ट है रकीबो की,

हम सच्चे होकर भी चूक गए,

ना समझे हमारा वो प्यार कभी,

क्यों फिर हमसे वो झूठ कहे।

 

उनको अपना सब कुछ मान लिया,

और हम जानबूझ कर ठूंठ रहे,

बंद आंखों से जो ख्वाब संजोया,

आँख खुली और छन से टूट गए।

 

अब तन्हा-तन्हा रहते है,

लो तन्हाई से ऊब गए ।

✍सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर

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