जब भी अल्फ़ाज़ और शब्दों का,
आकाल सा पढ़ने लगता है,
मन के भावों को प्रकट करने के लिए,
कलम को कुछ तो चाहिए!
उम्र के साथ साथ दिमाग कुंद पड़ने लगता है
अपने मन के भावों को प्रकट करने के लिए,
शब्दों का रिचार्ज करना पड़ता है!
तब किताबो को खोल कर विचारों के चयन के लिए,
शब्दों का चुनना , तालमेल बिठाना,
अपनी याददाश्त को दोबारा से व्यक्त करने के लिये,
किताबो का सहारा लेना पड़ता है!
सच्ची दोस्ती निभाती है यह किताबें,
हम उन्हें भूला भी दे पर ,
वो हमेशा वही खड़ी मिलती है,
जहां हम ने उन्हें छोड़ा था !
– मोनिका जैन मीनू, फरीदाबाद, हरियाणा