लग रहा हमें आया जैसे, संसार हमारे हाथों में,
आ गया अचानक खुशियों का,भंडार हमारे हाथों में।
ये नहीं किसी मोटर से कम,प्रिय हमको बहुत साइकिल है,
है नाज हमें इस पर इसकी, रफ्तार हमारे हाथों में।
टूटी फूटी जैसी भी है, यह सधना हमें सिखायेगी,
इसने दे डाला जीवन का, उपचार हमारे हाथों में।
बाबू जी ने यह भेंट हमें, नम्बर अच्छे पाने पर दी,
उनकी आशाओं का अब है, आधार हमारे हाथों में।
ऊबड़ खाबड़ जीवन पथ पर, यह चलना हमें सिखायेगी,
अपने घर आँगन का अब है, उजियार हमारे हाथों में।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश