ऋषि मुनियों की धरा यहाँ पर मेघ सुधा बरसाते।
स्वर्ग त्याग देवता कुटी में बसने को ललचाते।।
कवियों की यह मही जहाँ भावना उछल उठती है।
यहाँ सृजन के लिए स्वयं लेखनी मचल उठती है।।
अविनाशी वह ब्रह्म यहाँ कर-कर लीला मिटता है।
ले – ले कर अवतार खुशी से माता से पिटता है।।
नदियाँ गातीं गीत यहाँ हर झरना भजन सुनाता।
इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।1।।
जिसके बच्चे बचपन से ही रण रचना करते हैं।
जबड़े पकड़ बबर सिंहों के दाँत गिना करते हैं।।
कच्ची – कली खेलती – हँसती मर्दानी बन जाती।
अबला बाला रण में झाँसी की रानी बन जाती।।
मरे हुए पति को जीवित करने को अड़ जातीं हैं।
यहाँ नारियाँ सत के बल पर यम से भिड़ जातीं हैं।
यहाँ प्रकृति की हंसी देखकर मुकुलित मन इतराता।
इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।2।।
सपने में भी दिए वचन का जहाँ मान होता है।
शरणागत के लिए स्वयं का “प्राण” दान होता है।।
जहाँ वीरता सूरज को मुख में रख जी सकती है।
जहाँ तपस्या महासिन्धु को गट-गट पी सकती है।।
वर को कन्या दान पितर को पिण्डदान होता है।।
यहीं जगत् हित कालकूट विष जान पान होता है।।
यहां ज्ञान विज्ञान अँधेरों में भी राह दिखाता।
इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।3।।
जब वन्दे मातरम गीत को हम सब मिल दुहराते।
साँस – साँस में देशभक्ति के भाव उमड़ते आते।।
प्राण हथेली पर रखकर जब वीर चला करता है।
भाँप इरादे बैरी क्या ब्रह्माण्ड हिला करता है।।
सागर के सीने तक में अरमान यहाँ पलते हैं।
स्वाभिमान के दीप हमारी रग – रग में जलते हैं।।
यहाँ तिरंगा जन-गण-मन सुन लहर-लहर लहराता।
इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।4।।
– गिरेन्द्र सिंह भदौरिया “प्राण”
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