नही ! तुम दोस्त नही हो!
दोस्त से भी बढ़कर हो!
तुम मेरे लिए।
पर क्या ? पता नही!
ज़ोरों से धङकने लगता है
दिल तुम्हारे नाम से
पर क्यो? पता नही!
अपनों के भीङ में भी
रहता हूं बेगाना सा
एक तू ही बस मूझको
यहां लगता है अपना सा
पर कैसे? पता नही!
ये क्या, कयूं, कैसे ?
है छिपा कुछ तो इसके पिछे
अगर कहते है इसको इश्क
तो हुआ ये कब, कैसे पता नही।
– सम्पदा ठाकुर, जमशेदपुर