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किनारे नदी के – सविता सिंह

उनका ऐसा अनुराग जैसे नदी के दो किनारे,

मिलना नहीं उन्हें हैं पर एक दूजे के सहारे।

जहां हो समावेश ऐसा नहीं चाहते वो दरिया,

वो चाहे आगोश में ही उनके बहे नदी की धारें।

समेटे  रहना चाहते हैं वह उस बहाव को,

सहेज के रखा है अपने  इस लगाव  को।

मिलना नहीं उन्हें पर रहते आमने-सामने,

जानते हैं वह दोनों अपने  इस जुड़ाव को।

उन दोनों के बीच था मन का ही मिलन,

जैसे कृष्ण के राधा और राधा के किशन।

– सविता सिंह मीरा,जमशेदपुर

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