मनोरंजन

दोहे (देह) – मधु शुक्ला

किया नहीं सद्कर्म जो, पाकर मानव देह।

प्राप्त नहीं सम्मान वह, करता ईश्वर गेह।।

 

काया में जब प्रेम का, दीप जले दिन रात।

मानवता को तब करे, रोशन मानव गात।।

 

आवश्यक मन शुद्धता, मान रहे जो लोग।

प्रेम, ईश छवि का करें, वे ही जग में भोग।।

 

जीव अमर संसार में, नश्वर  मनुज  शरीर।

ईश भजन कर काट मन, माया की जंजीर।।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

Related posts

कविता – प्रदीप सहारे

newsadmin

प्रभात वर्मा प्रेरणा हिंदी प्रचार सभा के संरक्षक बने

newsadmin

एंटीबायोटिक प्रतिरोध 21वीं सदी का एक नया महामारी खतरा – डॉ. सत्यवान सौरभ

newsadmin

Leave a Comment