मनोरंजन

मुक्तक (नेपाली) – दुर्गा किरण तिवारी

आलो घाउझैँ सधैँ जिन्दगी दुख्यो, कसलाई भन्न जाऊँ?

सहन सकिन दुखाइ,भो अब  पुग्यो, कसलाई भन्न जाऊँ?

टुटिरहे सपनाहरू, छुट्यो खुसीको रेल, भेट्नै सकिएन,

टेकेको जमिन पनि भाग्यले लुट्यो, कसलाई भन्न जाऊँ ?

हिंदी –

जिंदगी हमेशा जख्म की तरह दर्द भरी रही है किसे बताऊ?

दर्द सह ना पाया अब बहुत हो गया किसको बताऊ?

सपने टूटते रहे, खुशी की रेल छूटी, मिल ना सकी।

किस्मत से लूट ली झुक रही जमीन किसको बताऊ?

– दुर्गा किरण तिवारी, पोखरा,काठमांडू , नेपाल

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