एक घटना याद आती है मुझे
अक्सर, अपने जीवन के बचपन की !
जब पढ़ा करते थे स्कूल में हम….,
तब, एक पुस्तक मेरी गुम हो गयी थी !!1!!
जब पुस्तक ढूंढने पर मिली नहीं
तब होकर हताश मैं बैठा नहीं !
और रहा खोजता इधर-उधर…….,
पर, आखिरतक वह हाथ लगी नहीं !!2!!
तब, घर लौटा बिन पुस्तक उदास
और रहा बैठा आकर चुपचाप !
पर, मन ही मन कर डाला ये तय…..,
कि, कल कैसे भी होगी वो पुस्तक पास !!3!!
अगले दिन कुछ ऐसा कर डाला
कि, मिल गयी मुझे मेरी वो पुस्तक !
जिसपे था मुझे चोरी का अंदेशा…..,
उसके बैग से उठा ली चुपचाप पुस्तक !!4!!
थी मेरी वो प्रथम बड़ी एक भूल
कि, मैंने भी वही कृत्य दोहराया !
और कर डाली ऐसी अक्षम्य गलती….,
जिसने था दिल को चोट पहुँचाया !!5!!
एक भूल सुधारना, कर दूसरी भूल से
नहीं हो सकता कभी भी न्यायसंगत !
यदि ये बात सभी सीखलें जीवन में……..,
तो, कभी ना होगा किसी का मन आहत !!6!!
होती रहती हैं जीवन में भूलें
पर, सुधारें भूल अवश्य समय पर रहते !
और आगे के लिए लेते चलें ये सबक…..,
कि, अब ना होगी फिर भूल हमसे !!7!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान