मछेरे वही हैं वही जाल भाई,
वही मछलियाँ हैं वही ताल भाई !
वही जाम ठर्रा मिला रोज मर्रा ,
पुराने तरीके वही हाल भाई !
लगी होड सी है चुराने की पैसा ,
सभी राजनेता दिखें लाल भाई !
बिके सौ टमाटर गयी प्याज ऊपर,
गरीबों की देखो छिली खाल भाई ।
अमीरी गरीबी में खाई बढ़ी है ,
चखी साल भर से नहीं दाल भाई !
अभी नोट बंदी का देखा तमासा,
नहीं खोज पाये दबा माल भाई !
चुनावी तमाशे नए रोज़ वादे ,
वही झूँठ सारे वही चाल भाई !
सभी हाथ खाली न रोटी न थाली ,
धरा पूत रोये नहीं ढाल भाई !
गधे खा रहे माल देखो तमाशा ,
छिले अश्व के खुर बिना नाल भाई ।
बटी कौम भोली कमीनी सियासत ,
बजाओ न “हलधर “अभी गाल भाई !
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून