मनोरंजन

गीत – मधु शुक्ला

हो रही अभ्यस्त जनता, मुफ्त के उपहार की।

जन हृदय से लापता है, भावना उपकार की।

 

हम हमारे खुश रहें श्रम बिन यही है कामना।

पीर औरों की न हमको भूलकर भी जानना।

पूछते मन से न अब हम खैर रिश्तेदार की……… ।

 

चाह जन को जाँचने की अब न वोटर पालता।

देखता हित मात्र अपना लोक हित को टालता।

लालसा पनपे न जन में देश के शृंगार की…… ।

 

हो नहीं सकती प्रगति बस राम के गुणगान से।

हम बढ़ायें मित्रता नित राम की पहचान से।

है बहुत हमको जरूरत न्याय सच आधार की……… ।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश

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