भोरे भोरे मुर्गा बाँगे,
दुनिया जागे आलस त्यागे,
प्राण पखेरू रागन लागे,
जग अपना धुन में गायेला।
जीवन ई चलते जायेला।
उठते केहू, सुर के साधे,
नौनिहाल, झोराले भागे,
दादा दादी गीता बांचे,
नवही उठ दौड़ लगायेला।
जीवन ई चलते जायेला।
अबला, सबला, लागे काजे,
पेटक चिंता, सब का आगे,
आज मिलल बिहान के ताके,
बस समय गुजरते जायेला।
जीवन ई चलते जायेला।
चिंतित मानव साँझ सकारे,
ना जाने का होई आगे,
हर कोई अपना धुन रागे,
चलते फिरते लहरायेला।
जीवन ई चलते जायेला।
अपना धुन पर आपन तानें,
कब केहू दोसर के मानें,
रातदिन सबे ज्ञान बखाने,
सुन समय मंद मुसकायेला,
जीवन ई चलते जायेला।
भवसागर में गोता मारें,
जीवन मरन बीच उलझा रे,
कल-कल,छल-छल बोल उचारे,
सुखदुख के गीत सुनायेला।
जीवन ई चलते जायेला।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह,
सिन्दरी, धनबाद, झारखंड