मनोरंजन

मेरी कलम से – डा० क्षमा कौशिक

मेहनत का शोर न कर,

खामोशी बेहतर है,

व्योम में रवि की प्रभा,

बिन शोर बिखर जाती है।

शोर करते है बादल,

शरद के,जोर जोर से,

बरसात में बरखा,

बिना शोर बरस जाती है।

– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड

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