मनोरंजन

हे विश्वनाथ शत् शत् वंदन – कालिका प्रसाद

विश्वनाथ   तुम  जग   रक्षक हो,

गले में तुम्हारी  सर्पो की माला,

तुम्हारे  दरवार में जो भी आता,

कभी  खाली  हाथ नहीं  जाता।

 

महादेव एक   अकिंचन   जान कर ,

कुछ  पास  नहीं  है तेरे  पूजन   को,,

पद पंकज का  मैं  नित  ध्यान   करुं,

महादेव पार लगाओ इस जीवन को।

 

कमर  में विषधर  नागो की माला,

हाथ में  त्रिशूल  डमरू   लिये  हो,,

तुम्हारे    मस्तक   पर  चंद्र  विराजे,

जटाओ  में  पतित पावनी मां गंगा।

 

हे नीलकंठ  तुमने   हलाहल  पिया,

खुद विष पीकर अमृत   पिलाते  हो,

कैलाश पर्वत   पर  हो धुनि  रमाये,

संग    तुम्हारे  रहती मां     पार्वती ।

 

कुछ दूध चढ़ा  शिव  पूजन    करते,

कुछ दीप जला  तुम्हारा अर्चन करते,

अभिषेक   करे      जल  धार   बहे,

शिवलिंग  पर लिपटा रहे  चंदन को।

 

मेरे   भोले बाबा  तुम औघड़दानी,

बस भाव भरे कुछ  पुष्प   लिए  हूँ,

कर   जोड़  खडा  हूँ  तेरे दर   पर,

विश्वनाथ  तुम्हें  शत्  शत्  वंदन।

-कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग  उत्तराखंड

Related posts

कविता – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

उलझन – मधु शुक्ला

newsadmin

कविता – अशोक यादव

newsadmin

Leave a Comment