फूल देखे तो सोचा उधर जाऊँगा,
बेचने फूल मैं तो शहर जाऊँगा।
जाम हमने पिया है तुम्हारे लिये,
बिन तुम्हारे कही मैं बिखर जाऊँगा।
ख्याब देखे थे हमने जिये साथ मे,
बिन तुम्हारे अजी मैं किधर जाऊँगा।
याद मे आज तेरी बहुत तड़फे हैं,
दर्द के इन्तेहा से गुजर जाऊँगा।
हाल पूछा न मेरा कभी जानकर,
रात दिन सोचता मैं तो मर जाऊँगा।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़