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” बेटियां सुरक्षित रहें, हम सभी चाहते हैं। पर कैसे ?” – रेखा मित्तल

यदि हम बेटों को संस्कारवान बनाएं तो बेटियां खुद ही सुरक्षित हो जाएगी। बोलने में कुछ अटपटा सा लगता है । परंतु समस्या की जड़ पर जाएं तो कहीं न कहीं यही  निष्कर्ष निकल कर आता है। अपने बेटों को संस्कारवान बनाना चाहिए । उन्हें ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह लड़कियों का सम्मान करें। क्या लडकियां केवल  भोग की वस्तु नहीं है ? वो भी एक जीता- जागता इंसान है। उसकी भावनाओं की कदर करनी चाहिए।

मेरा मानना है कि लड़कों की परवरिश में कमी है। लड़कों को कोई सीखाता ही नहीं कि कोई भी लड़की यदि ना बोलती है तो इसका मतलब ना ही होता  है। उसको अपनी ईगो या आत्म सम्मान को ठेस मानकर लड़कियों को अपनी बर्बरता का शिकार नहीं बनाना चाहिए। कहने को तो हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं, पर लड़कों या पुरुषों की मानसिकता अभी भी 100 वर्ष पीछे चल रही है।

मणिपुर की रूह कंपा देने वाली घटना ने यह साबित कर दिया है कितना भी हम स्त्री पुरुष के समान वेतन और कामकाज के अधिकारों में समानता की बातें करें , लेकिन समानता की राह में बहुत कांटे हैं। बड़ी मुश्किल से बेटियों की भ्रूण हत्या में कमी आई है, उनके जन्म की सकारात्मक स्थितियां बन रही है ,उनकी शिक्षा और महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देने की बातें होने लगी है और ऐसे में जब ऐसी घटनाएं सामने आती है तो एक बार फिर  तरक्की करने के सपने भी दम तोड़ जाते हैं। जो लोग आज के माहौल में लड़कियों के बिगड़ने या उनके संस्कारी होने , उनके रहन-सहन पर टिप्पणियां करते हैं ,वे लोग मणिपुर की भीड़ के उन लड़कों को देखिए ,उनको संस्कार के मायने समझ आ जाएंगे।

अभी उज्जैन में नाबालिग लड़की के साथ जो हृदय विदारक घटना हुई, उसमें पुरुष की कुत्सित मानसिकता ही सामने आती है। जो कुछ भी घटनाएं देश में हो रही है उसमें लड़कियों का तो कोई दोष ही नहीं है , न ही उनकी शिक्षा या उनकी काबिलियत पर कोई सवाल है , लेकिन उनके सम्मानजनक अस्तित्व की बात है तो है न ? क्या लड़कियों को जन्म लेने देना और पढ़ाना ही काफी है ? क्या वह लोग जो लड़कियों और स्त्रियों को अपनी बर्बरता का शिकार बना रहे हैं वह इस ग्रह के वासी नहीं है? किन घरों में जन्मे है ? कैसी परवरिश पाई है उन्होंने ? कोई भी कैसे माहौल में पला- बड़ा होता है, तभी वह किसी ऐसी हिंसक वारदात को जन्म देता है तो उसके पीछे उसकी कुत्सित सोच ही होती है।

बेटियों को बचाने के लिए हमें बेटों को शिक्षित करना होगा। केवल किताबी पढ़ाई ही नहीं, समय-समय पर भावनात्मक सुरक्षा और अपने ऊपर नियंत्रण की कार्यात्मक वर्कशॉप होनी चाहिए। नैतिक शिक्षा की उनको जानकारी देनी भी आवश्यक है। समाज में लड़कियों की स्थिति बदल तो रही है परंतु लड़कियों की आजादी या उनके देर रात तक काम करने के दौरान , उनके साथ अप्रिय घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।

किसी लड़की के साथ कोई अप्रिय वारदात हो जाती है तो उसके बाद उसकी समझ में जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। जो लड़कियों की समानता और आजादी की बात करता है तो वही उसको हीन दृष्टि से देखने लग जाता है। समाज की तो बात छोड़ो ,अपने घर में अपने माता-पिता का त्योहार भी अपनी बच्चियों के प्रति बदल जाता है।

बहुत ध्यान देने वाली बात है कि हम लड़कों की परवरिश किस वातावरण में कर रहे हैं । क्या एक इंसान दूसरे इंसान के प्रति इतना बर्बर हो जाने के लिए तैयार हो जाता है कि उसको अच्छे बुरे की समझ खत्म हो जाती है?

घरेलू अत्याचार ही कहीं न कहीं ऐसी घटनाओं को जन्म देते हैं। कोई भी पुरुष जन्म से ऐसा नहीं होता, उसका वातावरण या वह जिस समाज में उसकी परवरिश होती है वहीं से उसका चरित्र निर्माण होता है। इसलिए हमारा और समाज का यह दायित्व बनता है हम लड़कों को एक ऐसा वातावरण दें जिससे लड़के संस्कारवान बने।

इसके बाद भी पीड़ित स्त्री को ही बार-बार अपमान और दुत्कार की पीड़ा सहनी पड़ती है। जिन लोगों ने उसके साथ अत्याचार या बर्बरता की है वह तो सरेआम खुले घूमते हैं। समानता की मांग इस लिहाज से होनी चाहिए कि हम बेटों को संस्कार दें। बेटों को संवेदनशील बनाएं तभी बेटियों की शिक्षा या उनके सपनों का कोई अर्थ होगा।

” यदि हम बेटों को संभालेंगे तो बेटियां खुद ही खुद बच जाएगी।”

– रेखा मित्तल, सेक्टर-43, चण्डीगढ़

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