सुना है आज जैसा कल नहीं महँगा जमाना था,
न कोठी, कार, होटल का किसी को बिल चुकाना था।
अधिकतर आय सबकी पूर्व में सीमित रहा करती।
गुजारा प्रेम से होता न कोई चीज थी घटती।
सभी के होंठ पर संतोष का प्यारा तराना था – – – – -।
न कोठी, कार, होटल का- – – –
नहीं तब पाठशालाएं बहुत मँहगीं हुआ करतीं।
मगर वे ध्यान बच्चों का बहुत ही ध्यान से रखतीं।
वहाँ पर आपसी व्यवहार का मिलता खजाना था – – -।
न कोठी, कार, होटल का- – – –
लगा है ढ़ेर अब तो डिग्रियों का हर किसी घर में।
रहे बैचैन फिर भी मन नहीं है नौकरी कर में।
नहीं दुर्लभ रहा पहले कभी हँसना हँसाना था – – – – -।
न कोठी, कार, होटल का- – – –
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश