मनोरंजन

जान हो गई – अनिरुद्ध कुमार

ऐसा लगे क्यों दिल्लगी अंजान हो गई,

रौनक़ यहाँ उनके बिना बेजान हो गई।

 

नजरें निहारें रास्ता सुनसान है गली,

बदकिस्मती भी हाय मेहरबान हो गई।

 

अब हाल है बेहाल इक उजड़े मजार सा,

वीरानियाँ हीं आजकल पहचान हो गई।

 

गुजरें सभी फेरे नजर अब कौन पूछता,

हर दिन तमाशा जिंदगी हैरान हो गई।

 

बेहाल दिल खामोशियाँ दुनिया लगे जुदा,

गुमनामियों से जिंदगी हलकान हो गई।

 

रूठा लगें सारा जहाँ ना खैरख्वाह अब,

रोती ग़ज़ल भी आजकल बेतान हो गई।

 

बुजदिल बनें देखा करें बागे बहार ‘अनि’,

सावन झड़ी हीं जिंदगी की जान हो गई।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

Related posts

मचने लगा बवाल – डॉ. सत्यवान सौरभ

newsadmin

जरा मुस्कुरा के देखो – सुनील गुप्ता

newsadmin

सिहोरा जबलपुर इकाई के तत्वावधान ऑनलाइन काव्य गोष्ठी आयोजित

newsadmin

Leave a Comment