फकत आपसे हमने की दोस्ती है,
मेरी जान है तू मेरी जिंदगी है।
गरीबी को झेले परेशा सा दिखे,
जिये आज कैसे दुखी आदमी है।
तेरी चाह हम मे भरे आशिकी भी,
जिये साथ मिलकर कि दीवानगी है।
मैं अहले वफा लिख रही थी कभी से,
मिला दर्द मुझको सुनो हर घड़ी है।
सहे दर्द यारा बिना बात के* ऋतु,
जरा पास आ अब खिली चाँदनी है।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़