मनोरंजन

क्या हमारा है – अनिरुद्ध कुमार

देखले जहाँ को बदला हुआ नजारा है,

बात नौ हजारी मुश्किल यहाँ गुजारा है।

 

आँख की पुतलियाँ जीना हराम कर देती,

रंग बदलतीं नजरें देख क्या इशारा है।

 

खेल मतलबी हरदम सोंच के दुखी इंसा,

राह पूछता हरदम चाहता उबारा है।

 

रात-दिन तलाशे कोई मुकाम मिलजाता,

हर तरफ खुदी का कितना बड़ा पसारा है।

 

आदमी परेशान लगे किसे पुकारे रब,

कौन पूछने वाला रंग क्या बिदारा है।

 

जिंदगी सहारा चाहे अलम नहीं कोई,

खैरख्वाह नजरें ढ़ूढ़े कहाँ किनारा है।

 

गाँव शहर दौड़े हरदम कहाँ गुजारा ‘अनि’,

रोज पूछता फिरता बोल क्या हमारा है।

-अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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